पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१०१

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इसलिए कि उसके दोस्त के घर बिजली नहीं थी, जहाँ उसने उसको छिपा कर रखा था। दो बार भाग कर बम्बई गया और साथ अपने दोस्तों को भी ले गया। वहाँ भी कोई एय्याशी नहीं की; किन्तु फिर भी सारा रुपया ख़ा ख़िला कर हाथ झाड़ते हुए वापस आ गये।

सैय्यद का बाप सदा ही उससे नाराज रहता था। वह बहुत ही तेज़ स्वभाव का व्यक्ति था, उसको अपने लड़के की बातों पर बड़ा क्रोध आता और उसको कठिन से कठिन दंड भी देता; किन्तु वह अपने जीवन में उनको न सुधार सका। सैय्यद की माँ उसके पिता से बिल्कुल विपरीत थी, यानी बहत ही शान्त स्वगाव की थी। उसे अपने बच्चे से इतना प्यार था कि यदि किसी से उसकी बात की जाये तो एक अच्छा खासा नोवल बनाया जा सकता है। सैय्यद के लिये उसने बहुत दुःख उठाए, अनेक बात सही और उसकी प्रत्येक इच्छा को पूरा किया। वह लोगों से कहती थी----"मेरा बेटा फिजूल खर्च है, उसको आगे पीछे का रत्ती भर भी ख्याल नहीं। भले ही वह जिद्दी है; किन्तु दिल उसका बुरा नहीं। तुम देख लेना, एक दिन सब गरीबी धो डालेगा।"

अब भी उसका यही विचार था कि उसका फिजूल-खर्च बेटा एक दिन अवश्य ही बड़ा आदमी बनेगा और राब नाज्जुब में पड़ जायेगे। माँ के हृदय में ऐसी बातों का उठना भी स्वाभाविक ही था; क्योंकि प्रत्येक माँ अपनी सन्तान के विषय में ऐसा सोचती ही है। इसके साथ ही सैय्यद की माँ पर्ले दर्जे की खुश और खुदा पर भरोसा रखने वाली औरत थी, इसलिए वह कभी निराश नहीं होती थी। उसको खुदा के घर से उम्मीद थी कि उसका बेटा एक दिन अवश्य ही सुधर जायेगा। उसके सभी दु:ख दूर हो जायेगे। वह सदा ही सैय्यद के लिये दुआ मॉगती रहती थी; क्योंकि उसका कहना था कि आदमी खुद बुराइयाँ

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हवा के घोड़े