पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१०२

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नहीं छोड़ सकता और सिर्फ खुदा की मेहरबानी से ही बुराइयाँ दूर हो सकती हैं। अत: सैय्यद से उसने इसीलिए कभी वहम न की।

इधर उसका बेटा सैय्यद खुदा के नाम से अनभिज था। यह अनभिज्ञता जाहिर नहीं थी; क्योंकि सब कामों में उसे अपना ही हाथ दीख पड़ता था। वह एक तेज़-धारा में बहता हुआ जा रहा था, एक ज़माने से उसके विचार अनेक रूपों में निकल-निकल कर इधर-उधर बिखर रहे थे।

उसका जीवन, एक ऐसी कहानी के समान था, जो किसी भी सफे पर न लिखा गया हो, जिस प्रकार कहानी का प्लाट बनाते समय लेखक के विचारों को तनाव आ जाता है और बड़ी घटनाओं और छोटी घटनाओं का ढेर सा लग जाता है। ठीक इसी प्रकार सैय्यद का जीवन भी घटनाओं से भरा हुआ था।

वह एक ऐसे मार्ग पर चल रहा, जो कभी खत्म हो सके। बड़ी तेजी के साथ, जो कुछ पीछे छोड़ दिया, उसकी चिन्ता नहीं करता था और न ही आगे आने वाले की चिन्ता करता था। वह भूत और भविष्य के बीच में वर्तमान की पगडंडी पर खेल रहा था। ऐसा खेल, जिसे समझने की चेष्टा करते हुए भी न समझ सका।

बाप की मार और माँ का प्यार ( दुआ ) उस पर न चढ़ सका। वह अपने जीवन को समझने के लिए ऐसे रास्ते पर चलता रहा, जो कभी भी आसान या कठिन बन सकता था।

उसका बाप, इसके कामों को देख कर खेद करता हुया मर गया। बाप की मृत्यु ने, उस पर काफी असर डाला, वह कई घंटे तक बाप के मृतक शरीर पर रोया; किन्तु उसका दिमाग शोक के आँसुओं के

हवा के घोड़े
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