पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१०३

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आगे भी देखना चाहता था। आगे बहुत आगे, औरतों की चीखों और रोने-धोने के भयंकर आवाज़ों के बीच में, उसका मन ऐसी आवाज़ की खोज कर रहा था, जिसको सनकर उसकी आत्मा को शान्ति मिले। उसके नेत्र रोएँ, उसका सारा शरीर रोया। बाप की मृत्यु का उसे बहुत ही दुःख था; किन्तु रोते-रोते उसे ख्याल आया कि मैं रो रहा हूॅ। यह लोग जो आस-पास बैठे हैं, क्या मन में तो विचार नहीं करते कि ये सब ढोंग है। इस विचार ने मानो सैय्यद को संसार में फेक दिया हो? उसके अश्रु शुष्क हो गये और किसी दूसरे तक वह अपने मृत्तक बाप के मुख की ओर देखता रहा, जिस पर उसके भ्रष्टाचार पर क्रोध और घृणा के मिले-जुले भाव प्रकट कर रहा था...!

बाप को जब कब्र में छोड़, अपने दोस्तों और सम्बन्धियों के साथ वापस आया था। रात के अकेले में उसे महसूस करके आश्चर्य हुआ कि वह बहुत हल्का हो गया है, मानो उसके शरीर पर मनों बोझा लदा हुआ हो। उसका अर्थ समझने की कोशिश की; किन्तु असमर्थ रहा।

बाप की मृत्यु के पश्चात्त, एक दिन उसने बहुत से विचारों को हृदय में इकट्ठा किया और फैसला किया कि अब वह नया रास्ता ढूँढेगा और चलेगा अपने पुराने रास्ते पर भी डटा रहेगा; किन्तु ये नया रास्ता दो या तीन मोड़ों के पश्चात्त ही, पुराने रास्ते पर ले आया। जिस पर वह बहुत देर से चला आ रहा था। जब इस विषय में कुछ विचार आया, तो सोचा कि जिन्दगी खुद रास्ता बनाती है। रास्ते जिन्दगी नहीं बनाते, इसी कारण अधिक सोच-विचार के बिना ही चलता रहा और चलते-चलते उसकी राजो से मुठभेड़ हो गई। उस से छुट्टी पाने के हेतु लाहौर भाग आया, तो यहाँ मिस फरिया से भेंट हो गई। उसे ऐसा महसूस होने लगा कि इस लड़की के कारण

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हवा के घोड़े