पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१०४

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उसे अपनी यात्रा कुछ दिनों के लिए स्थगित करनी पड़ेगी।

मिस फरिया से प्यार करने का विचार फिजूल है; क्योंकि इसे उस दृष्टिकोण से देखना ही नहीं है। फरिया सुन्दर थी, इसमें वे सभी बातें थीं, जो मर्दो की तमन्ना पूरी कर सकती है। इसके अलावा वह एक ऐसे स्वभाव की मालिक थी, जो सैय्यद के दिमाग़ में बिल्कुल फिट बैठता हो। खुदा ने इन दोनों को एक दूसरे के समीप कर दिया। सैय्यद के दिल में यह इच्छा हो रही थी कि फरिया को छूकर देखे, इसको समझे, इसके जीवन की सीमा देखने का विचार उसके दिमाग़ में ही नहीं उठा था। वहाँ रहते-रहते जब दो दिन गुजर गये तो तीसरे दिन उसने साहस करके अपने हृदय की बात गोल-मटोल ढंग से कहते हए कहा--"देखो, मिस फरिया! देखो!" किन्तु इससे अधिक वह कुछ न कह सका ..।

सैय्यद की इस अधूरी अभिव्यक्ति पर फरिया ने कहा---"कुछ कहते-कहते क्यों रुक जाते हो, कहो क्या कहना चाहते हो? कहो, जो कुछ चाहते हो, कहो।"

"मैं नहीं कह सकता। अल्फाज़ मेरी ज़बान पर आते हैं और फिर न जाने क्यों वापस चले जाते है? यह मेरी कमज़ोरी कभी दूर न होगी। मैं कुछ नहीं कहना चाहता।"

"यह और भी बुरा है। तुम कुछ कहना चाहते हो और कुछ कहना भी नहीं चाहते और और की यह क्या बीमारी है?"

"मैं तुम से कई बार कह चुका हूँ कि मेरा लालन-पालन ऐसे वातावरण में हुआ, जहाँ आजादी का नाम लेना और आजादी विचार को बड़ा भारी कसूर माना जाता था। जहाँ सच्ची बात कहने वाला असभ्य और झूठी बात कहने वाले को सभ्य माना जाता है।"

हवा के घोड़े
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