पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१०६

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फरिया के कपाल और भी लाल हो गये। बोली---"तुम बिल्कुल बच्चे हो, इसके बिना ही अच्छी तरह निर्वाह हो सकेगा। तुम...तुम ...तुम आखिर क्या चाहते हो तुम?"

फरिया के इस सवाल ने सैय्यद को परेशान सा कर दिया।

"मैं...मैं...क्या चाहता...मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे पास रहो।"

यह कह कर सैय्यद को ऐसा महसूस हुआ, मानो इसका हृदय खाली हो गया हो, जैसे मोटर के टायर से हवा निकल गई हो। वह घबड़ाया सा उठा और तेजी से कमरे के बाहर निकल गया। फरिया बैठी रही। उसका विचार था कि वह शीघ्र ही आजायेगा, किन्तु जब दम पन्द्रह मिनट व्यतीत हो गए, तो उसने उठकर बाहर बालकोनी में देखा, तो वहाँ कोई भी नहीं था? जब नीचे बाजार की ओर देखा, वहाँ भी सैय्यद नहीं था। फरिया को बड़ा आश्चर्य हुआ कि उसे अकेली छोड़ कर न मालूम कहाँ भाग गया? इसलिए वापस कमरे में आकर वह संय्यद की प्रतीक्षा करने लगी।...

दिन भर वह उसके इन्तजार में बैठी जाने क्या सोचती रही जब शाम होने को आई तो सैय्यद वापिस आया और कमरे में जाने लगा; पर कमरा अन्दर से बन्द था। उसने धीरे से दस्तक दी। थोड़ी देर के पश्चात्त दरवाजा खुला और ज्यों ही उसने कमरे में प्रवेश किया, तो फरिया ने तुरन्त ही दरवाजा बन्द कर दिया और कहा---"तुम्हें शर्म नहीं आती! इतनी देर के बाद घर वापस आए हो। लेकिन छोड़ो; इन बातों को। बताओ क्या खाओगे और कहाँ खाओगे? मुझे बड़ी भूख लग रही है।"

वह उत्तर में फरिया से कुछ कहने ही वाला था कि उस की दृष्टि चारपाई पर गई। बिस्तर बिछा हुआ था, सिरहाने के समीप उसका

हवा के घोड़े
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