पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१०७

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नोवल पड़ा था, वह अभी तक उसने आधे के लग-भग ही पढ़ा था। उसके चारों जूते बड़े अच्छे ढंग से रखे हुए थे। चमड़े के सूटकेस एक ओर रख दिए थे। सामने खिड़की की सिल पर टाईमपीस टक्-टक् कर के अपनी ओर बुला रही थी। इधर उधर जो गुसलखाना है उसका दरवाजा खुला है और उसने देखा स्टेण्ड पर तौलिया लटक रहा है। उसको ऐसा अनुभव हुआ कि वे बहुत दिनों से इस कमरे में रहा है और फरिया को बहुत देर से जानता पहचानता है यह सब कछ देखकर उसकी प्रसन्नता की सीमा न रही। प्रसन्नचित्त सैय्यद ने कहा,---"फरिया!...कई एक बात की कमी रह गई है। इधर जंगले में तुम्हारे धुले हुए बनियान लटकने चाहिएँ और साथ वाला कमरा खाली पड़ा है, इसमें तुम्हारा सिंगार-मेज़ होना चाहिए और उस पर पाउडर और क्रीमों के डिब्बे बिखरने चाहिए और..और। ..यदि एक झूलना भी आजाये, तो क्या ही अच्छा हो? वाह अल्लाह पूरा परिवार ही इकट्ठा हो जाये और मैं...मैं..लेकिन मैं जरूरत से ज्यादा तो नहीं कह गया।"

फरिया ने आगे बढ़ कर अपनी बाहैं इसके गले में डाल दी। बोली- --"तुम फिजूल की बातों को दिमाग़ मैं स्थान न दिया करो। साथ वाला कमरा कल ही ले लेना चाहिए। सिंगार-मेज़ भी रहे, किन्तु यह झूलने की बात ठीक नहीं है। मैं इतनी जल्दी औरत बनने की इच्छा नहीं रखती। विचार है कि तुम पति बनने योग्य भी नहीं हो। अच्छा बताओ खाना खाने के विषय में तुम्हारा क्या विचार है? मैं कहती हूँ कि-वहीं होटल में अन्तिम भोज उड़ाया जाए और किराया यादि चुका कर मैं अपना सारा सामान यहाँ ले आऊँ।"

यह सुनकर सैय्यद कुछ घबड़ाया। फरिया की बाहें उसने अपने

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हवा के घोड़े