पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१०९

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सैय्यद अब बहुत ही खुश था। फरिया के साथ रहते हुए, आज पूरे दस दिन हो गए थे उसे। साथ वाला कमरा भी उन्होंने किराये पर ले लिया था। सिंगार-मेज़ भी आ गई थी और इधर दूसरे कमरे में एक छोटी तिपाई और तीन कुर्सियाँ भी लाकर रख दी गई थीं। जिन्दगी बड़ी ही खुशी से गुजरने लगी।

फरिया भी खुश थी। उसे इतना अच्छा दोस्त मिल गया था, जिसका दिल धोखेबाजी से हमेशा ही खाली रहता है। सैय्यद खुश था। उसे औरत मिल गई। जिन्दगी में पहली बार उसे ऐसी औरत मिली थी; जिसे वह छू भी सकता था और जिससे वह बेधड़क बाते कर सकता था। उसे कई तरह का तर्जुबा था, और उसे खुश रखने के बहुत से तरीके आते थे।

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हवा के घोड़े