पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१११

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दोस्तों और रिश्तेदारों के सामने लज्जित होना पड़ेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि उसे खुद ही लज्जित होना पड़ेगा। अपने ख्यालों के उल्ट में वह बिल्कुल मजबूर होगा। वह सब बातें, जो सैय्यद के दिमाग़ में थी और वे क्रान्तिकारी ख्याल उसके दिल में जमा थे, वहीं के वही रखे रह जाएँगे और उसका सिर झुक जायेगा। उसको लज्जित होना पड़ेगा, बिना किसी बात के?

यों ही सोच विचार करते हुए दिन निकलते गए, पर एक दिन अचानक फरिया और सैय्यद दोनों शाम का शो चारली-चपलिन का फिल्म माडर्न-टाइमज देखने के लिए गए। जब खेल देखकर सिनेमाहाल से बाहर निकले, तो एक आदमी ने तीखी निगाह में इन्हें देखा। फरिया ने उससे कहा--"यह आदमी तुम्हें बड़े ध्यान से देख रहा हैं। तम्हारा दोस्त तो नहीं।"

सैय्यद ने उस आदमी की ओर देखा और मानो जमीन उसके पैर से निकल गई हो। यह उसका दूर का रश्तेदार था, जो लाहौर में ही रहता था और किसी कालेज में अध्ययन करता था? उसने सिर के इशारे से ही सलाम का उत्तर दिया और फरिया को बिना साथ लिए भीड़ में घुस गया, जो बड़े फाटक पर लगी थी।

बाहर निकल कर जो पहला ताँगा मिला, सैय्यद उसी में बैठ गया, इतने में फरिया भी आ गई। जल्दी से उसको ताँगे में बिठाकर, घर की तरफ, ताँगे वाले से चलने के लिए कहा। रास्ते में कोई बात नहीं हुई; लेकिन जैसे ही दोनों ताँगे मे उतरकर कमरे में आए, तो फरिया ने पूछा--"तुम्हें एकदम क्या हो गया है? वह आदमी कौन था, जिसके डर से तुम मुझे छोड़कर भाग गए?"

टोपी उतार कर सैय्यद ने चारपाई पर फैक दी और कहा--"मैं

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हवा के घोड़े