पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१२

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करता था। उस युवती को देखकर उसकी जिह्वा पर वैसा ही अनुभव हुआ, जैसा आनन्द सलजम का गुद्दा चबाते समय होता है; परन्तु उसके हृदय में उससे प्रेम करने का विचार उत्पन्न न हो सका। वह उस की गति को ध्यान-पूर्वक देखता रहा, जिस में टेढ़ा-पन था। वैसा ही टेढ़ा-पन जैसा बरसात में खटिया के चारों पायों में कान पड़ जाने के कारण हो जाता है। वह उसके प्यार में स्वयं को न बाँध सका।

बार-बार निराश होने पर भी उसे आशा थी और वह इसी कारण अपनी गली के नुक्कड़ वाली दरियों की दुकान पर जा बैठता था। यह दुकान सैय्यद के दोस्त की थी। जो हाई-स्कूल में पढ़ने वाली एक लड़की से आँखें लड़ा रहा था। उस लड़की से उसका प्यार लुधियाने की एक दरी के कारण हुया था। दरी का मूल्य जो पाँच रुपये था, उस लड़की के कथनानुसार उसकी सलवार के नेफे में से खुलकर गिर पड़ा था। लतीफ़ उसके घर के पास ही रहता था। इस लिये उस लड़की ने अपने चाचा की गालियों से छुटकारा पाने के लिये, उस से दरी उधार माँगी और ... बस दोनों का प्यार हो गया।

शाम के समय बाजार में आने-जाने वालों की भीड़ अधिक होती थी, क्योंकि दरबार-साहब जाने के लिए अकेला वही रास्ता था। इसलिये स्त्रियाँ भी अधिक संख्या में उसकी नज़रों के सामने से चलचित्र की भाँति निकल जातीं। लेकिन जाने क्यों, उसे ऐसा अनुभव होता कि जितने लोग बाज़ार में चलते-फिरते हैं, सब के सब खाली हैं? उसकी आँखें किसी पुरुष या स्त्री पर नहीं ठहरती थीं। लोगों की भीड़-भाड़ को देखकर वह अनुभव करता था कि यह यन्त्र है, केवल देख सकते हैं, कुछ कर नहीं सकते।

उसकी आँखें किस ओर थीं? यह न आँखों को याद है, न सैय्यद को। उसकी आँखें दूर, बहुत दूर सामने चूने और मिट्टी के बने हुए

हवा के घोड़े
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