पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१२०

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उस दिन मैं दिल्ली में था। जिस दिन वह मरा है, उस दिन भी दिल्ली में उपस्थित हूँ। उसी घर में हूँ जिस में आज से चौदह साल पहले वह मेरे साथ पन्द्रह दिन रहा था। घर के बाहर वही बिजली का खंभा है, जिसके नीचे पहली बार हम गले मिले थे। यह वही अन्डर हिल रोड है, जहाँ आल इंडिया रेडियो का पुराना दफ्तर था, जहाँ हम दोनों काम किया करते थे। यह मेडन होटल का बार है। यह मोरी गेट के प्रधान का घर है। यह जामा मस्जिद की सीढ़ियाँ हैं; जिस पर हम कबाब खाया करते थे। यह उर्दू बाजार है। सब कुछ वही है, उसी तरह से है। सब जगह उसी तरह से काम हो रहा है। आल इंडिया रेडियो भी खुला है, मेडन होटल का वार भी और उर्दू बाजार भी; क्योंकि मन्टो एक बहुत मामूली आदमी था। वह एक गरीब कहानीकार था। वह कोई मंत्री नहीं था, जो उसकी शान में झंडे झका दिये जाते। वह कोई सट्टेबाज और ब्लेक मार्केटर भी नहीं था, जो कोई बाजार उसके लिए बन्द होते? वह कोई अभिनेता भी न था, जिसके लिए स्कूल और कालेज बन्द हो जाते। वह एक गरीब सताई हुई भाषा का, गरीब और सताया हुआ लेखक था। वह मोचियों, वैश्याओं और तागे वालों का प्यारा लेखक था। ऐसे लेखक के लिए कौन रोयेगा? कौन अपना काम बन्द करेगा? इसीलिए आल इंडिया रेडियो खुला है; जिसने सैंकड़ों बार उसकी कहानियों के ध्वनि नाट्य ब्राडकास्ट किये हैं। उर्दू बाजार भी खुला है, जिसने उसकी हजारो किताबें बेची है और आज भी बेच रहे हैं। आज मैं उन लोगों को भी कहकहा लगाकर हँसते देख रहा हूँ; जिन्होंने मन्टो से हजारों रुपये की शराब पी है। मन्टो मर गया तो क्या हुआ? व्यापार-व्यापार है? एक क्षण के लिए भी काम नहीं रुकना चाहिये, जिसने हमें सारी जिन्दगी दे दी, उसे हम अपना एक क्षण भी नहीं दे सकते। सिर झुका के एक क्षण के लिए उसकी याद को हम अपने दिलों में ताजा नहीं कर सकते। धन्यवाद के साथ,

हवा के घोड़े
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