पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१२१

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खुशामद के साथ, हमदर्दी के साथ उसकी तड़पती हुई आत्मा के लिए जिसने हत्तक, नया कानून, खोल दो, टोबाटेक सिंह ऐसी दर्जनों बेमिसाल और अमर कहानियाँ लिखी हैं। जिसने समाज की निचली तहों में घुसकर पिसे हुए, कुचले हुए समाज की ठोकरों से बिगड़े हुए चरित्रों को उठाकर इज्जत दी है। जो वास्तविकता और कलात्मकता के लिये गोर्की के Lower Deptths के चरित्रों की याद दिलाते हैं। अन्तर केवल इतना ही है, कि उन लोगों ने गोर्की के लिए अजायबघर बनाये, मूर्तियाँ बनाई, शहर बनाये और हमने मन्टो पर मुकदमें चलाये, उरो भूखा मारा, उसे पागलखाले पहुँचाया, उसे हस्पतालों में सड़ाया और आखिर में उसे यहाँ तक मजबूर कर दिया, कि वह किसी इंसान को नही, शराब की बोतल को अपना दोस्त समझने को मजबूर हो जाए।

यह कोई नई बात नहीं है। हमने ग़ालिब के साथ यही किया था। प्रेमचन्द के साथ यही किया था, हसरत के साथ यही किया था। मन्टो के साथ भी यही व्यवहार करेंगे, क्योंकि मन्टो कोई इनसे बड़ा विद्वान तो नहीं था, जिसके लिए हम अपनी पाँच हजार वर्ष की संस्कृति को तोड़ दें। हम इन्सानों के नहीं मकबरों के पुजारी हैं। दिल्ली में मिर्जा ग़ालिब की फिल्म चल रही है। इस फिल्म की कहानी इसी दिल्ली के मोरी गेट में बैठकर मन्टो ने लिखी थी। एक दिन हम मन्टो की तस्वीर भी बनायेंगे और इससे लाखों रुपये कमायेंगे, जिस तरह आज हम मन्टो की किताबों के कई-कई नकली एडीशन हिन्दुस्तान में छाप-छाप कर हजारों रुपये कमा रहे हैं। वह रुपये जिस की मन्टो को अपनी जिन्दगी में अत्यन्त आवश्यकता थी। वह रुपये प्राज भी, जो उसकी बीवी और बच्चों को मुसीबत जिल्लत से बचा सकते हैं। मगर हम ऐसी गलती नहीं करेंगे। अगर हम अकाल के दिनों में चावल की दर बढ़ाकर इन्सानों के खून से अपना मुनाफा बढ़ा सकते हैं, तो क्या इस मुनाफे

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हवा के घोड़े