पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१२२

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के लिए गरीब लेखक की जेब नहीं कतर सकते। मन्टो ने जब 'जेबकतरा' लिखा था, उस वक्त उसे मालूम नहीं था, कि एक दिन जेब कतरों की पूरी की पूरी जमात से उसका वास्ता पड़ेगा।

मन्टो एक बहुत बड़ी गाली था। इसका कोई दोस्त ऐसा नहीं जिसे इसने कोई गाली न दी हो? कोई उसका ऐसा प्रकाशक भी नहीं जिससे इसने लड़ाई मोल न ली हो। कोई मालिक ऐसा नहीं जिस की इसने बेइज्जती न की हो? प्रकाशित तौर पर वह तरक्कीपसन्दों से खुश नहीं था, न गैर तरक्की पसन्दों से, न पाकिस्तान से, न हिन्दुस्तान से, न अंकलशाम से, न रूस से--जाने इसकी तड़पती हुई बेचैन आत्मा क्या चाहती थी? इसकी जवान बेहद कड़वी थी--कहने का तरीका नुकीला और पैने तीर की तरह तेज और बेरहम, लेकिन आप इसकी गाली को, इसकी कड़वी बोल-चाल को, इसके तेज नुकीले काँटेदार शब्दों को जरा सा खुरच कर तो देखिये। अन्दर से जिन्दगी का मीठा-मीठा रस ठपकने लगेगा। इसकी घृणा में प्यार था। नंगेपन पर आवरण वह इस तरह डाल देता था, कि अस्मतफरोशी करने वाली वैश्याओं के आंचल भी लज्जा की लाली से भर, चमक उठते थे--जो उसके साहित्य की पवित्रता के द्योतक हैं। मन्टो से जिन्दगी ने इन्साफ नहीं किया; लेकिन इतिहास अवश्य उससे न्याय करेगा।

'मन्टो बयालीस की उम्र में मर गया। अभी इसके कुछ कहने और सुनने के दिन थे। अभी जिन्दगी के कडुवे अनुभवों ने, वर्तमान समाज की निर्दयता ने, मुसीबतभरी जिन्दगी के क्षणों में, इसके हताश व्यक्तित्व के क्रोध और नातरफदारी को कम करके उससे 'टोबाटेक सिंह' ऐसी कहानी लिखवाई थी। दुःख मन्टो की मौत का नहीं है- मौत आने वाली है, मेरे लिए भी और तुम्हारे लिये भी--पर दुःख तो इस बात का है, कि वह साहित्य को और जो हीरे पन्ने जवाहारात देता, वह अब

हवा के घोड़े
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