पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१२३

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उसे नहीं मिलेगे, जो सिर्फ मन्टो ही दे सकता था उर्दू साहित्य में अच्छे-अच्छे कहानीकार पैदा हुए; लेकिन मन्टो दुबारा पैदा नहीं होगा और कोई उसकी जगह लेने नहीं आयेगा। यह बात मैं भी जानता हूँ और राजेन्द्रसिंह बेदी भी, अस्मत चुगताई भी, ख्वाजा अहमद अब्बास भी और उपेन्द्रनाथ अश्क भी। हम सब लोग उसके चाहनेवाले, उससे झगड़ा करने वाले, उसे प्यार करने वाले, उससे घृणा करने वाले, उससे मोहब्बत करने वाले साथी और हमसफर थे और आज जब वह हम में नहीं हैं। हम में से हर एक ने उसकी मौत के जनाजे को अपने कंधे पर महसूस किया है। आज हम में से हर एक की जिन्दगी का एक हिस्सा मर गया है। ऐसे समय में जो फिर कभी वापस न आ सकेगा। आज हम में से हर व्यक्ति मन्टो के करीब है और हैं एक दूसरे के निकटतर। ऐसे समय में अगर हम यह निर्णय करलें, कि हम मन्टो की जुम्मेदारियों को मिलकर पूरा करेंगे, तो उसकी आत्महत्या बेकार न होगी।

आज से चौदह साल पहले मैंने और मन्टो ने मिलकर एक कहानी लिखी थी "बनजारा"। मन्टो ने आज तक किसी दूसरे लेखक के साथ मिलकर कोई कहानी नहीं लिखी, न उससे पहले न उसके बाद। वे दिन तेज सदियों के थे। मेरा सूट बेकार हो लिपटा पड़ा था और मन्टो का सूट भी लिपटा हुआ था। मन्टो मेरे पास आया और बोला ऐ कृशन! "नया सूट चाहता है?"

मैंने कहा--'हाँ'

'तो चल मेरे साथ'--

'कहाँ?'

'बस ज्यादा बकवास न कर, चल मेरे साथ'--

हम लोग एक फिल्मवितरक के यहाँ गये। मैं वहाँ अगर कुछ कहता तो सत्य ही बकवास होती, इसलिये मैं खामोश ही रहा। फिल्म

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