पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१५

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इतना ही अन्तर था, जितना कि लुधियाने की दरी और कश्मीर के गद्देदार ग़ालीचे में...।

सैय्यद की समझ में न आता था कि प्रेम किस प्रकार होता है, अपितु कैसे कहा जाये कि हो सकता है? वह जिस समय भी चाहे, शोक में डूब जाये और जब चाहे स्वयं खुश भी कर सकता था। आह! वह प्यार नहीं कर सकता था, जिसके लिये वह बेचैन था।

उसका एक मित्र, जो बड़ा ही जल्दबाज़ था। वह मूँगफली और चनें, केवल उस अवस्था में खा सकता था, यदि उनके छिलके उतरे हुए हों। अपने मुहल्ले की एक हसीन लड़की से आँखें लड़ा रहा था। हर समय उसके हुसन की प्रशंसा अलापने में लीन रहता। यदि उससे पूछा जाता—यह सौन्दर्य तुम्हारी प्रेमिका में कहाँ से शुरू होता है, तो निश्चित ही वह खाली दिमाग़ हो जाता। हुसन का मतलब वह न समझ सकता था। कालेज में पढ़ने के इलावा भी उसके दिमाग़ की नींव घटिया रखी गई थी; परन्तु उसके प्यार की कहानी इतनी लम्बी थी कि कालीदास के ग्रन्थ से भी बड़ा ग्रन्थ बन सकता था। आखिर इन लोगों को...इन असभ्यता के प्रेमियों को प्रेम करने का क्या अधिकार है? ...कई बार यह प्रश्न सैय्यद के दिमाग़ में उत्पन्न हुआ और घबराहट बढ़ गई; परन्तु कुछ समय विचारों के समुद्र में डूबकर उससे बाहर निकला और कहने लगा-"प्रेम करने का सबको अधिकार, है, चाहे कोई सभ्य हो या असभ्य......"

किसी अन्य को प्यार करते देख कर, वास्तव में उसका हृदय ज्वाला-मुखी के समान फटने लगता। यह जानते हुए भी कि यह नीचता है; परन्तु वह असमर्थ था, क्योंकि प्यार करने की लालसा उसके दिमाग़ पर छाई रहती। कभी-कभी तो कई बार वह प्यार करने वालों को गन्दी-गन्दी गालियाँ भी देने लगता और गालियों के पश्चात् स्वयं को

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हवा के घोड़े