पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/२१

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यदि इससे वह कहता, "हमीदा मैं तुम से प्यार करना चाहता हूँ, तो अवश्य ही इसके मन की धड़कन वाली आवाज बन्द हो जाती। वह इसे सीढ़ियों में ही ऐसा कह सकता था। कल्पना में वह हमीदा से उसी स्थान पर मिला..वह ऊपर से तेजी के साथ जा रही थी और उसने उसे रोका और ध्यान से देखने लगा। उसका छोटा-सा दिल हृदय में इस प्रकार फड़फड़ाया, जैसे तेज वायु के झोंके से दीपक की लौ। वह कुछ न कर सका।"

हमीदा से वह कुछ नहीं कह सकता था। वह इरा योग्य ही नहीं थी, जिससे प्यार किया जा सके। वह केवल विवाह योग्य थी। कोई भी पति इसके लिये ठीक हो सकता था। उसका प्रत्येक अंग, स्त्री बनने योग्य था। उसकी गिनती उन लड़कियों में हो सकती थी, जिनका समस्त जीवन विवाह के पश्चात् घर में सिमट के रह जाता है। जो बच्चे पैदा करती रहती हैं। कुछ ही वर्षों में अपना यौवन नष्ट-भ्रष्ट कर बैठतीं और रंग-रूप खोकर भी जिनको अपने में कुछ भी अन्तर नहीं दीख पड़ता।

इस प्रकार की लड़कियों से प्यार का नाम सुनकर तो यह समझे कि अचानक बड़ा भारी पाप हो गया है। वह प्यार नहीं कर सकता था। उसे विश्वास था, यदि वह किसी दिन ग़ालिब की एक भी पंक्ति उसे सुना देता, तो कई दिनों तक नमाज के साथ-साथ क्षमा याचना माँग कर भी वह यह समझती कि उसकी ग़लती क्षमा नहीं हुई... अपनी माँ से उसने तुरन्त सारी बात कह सुनाई होती और उस पर वो उधम मचते के विचार आते ही सैय्यद काँप उठता। स्पष्ट है कि सभी उसको दोषी ठहराते और जीवन-भर उसके माथे पर एक ऐसा दाग़ लग जाता। जिस के कारण उसकी कोई बात भी न सुनने के लिये तैयार होता; परन्तु वह ऊँची चट्टानों से टकराने का विचार रखता था।

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हवा के घोड़े