पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

के पश्चात् स्वयं ही समाप्त हो जाती और फिर नई ताज़गी के साथ प्रेम-समस्या को सुलझाने का प्रयत्न करता था।

नं० ८ जुविदा उर्फ जिंदा मोटे-मोटे हाय-पाँव वाली लड़की थी? यदि उसे दूर से कभी देख लेता तो गुँथे हुए मैदे के समान ढेर दीख पड़ती थी। मुहल्ले के एक नवयुवक ने एक बार उसको आँख मारी, प्रेम की प्रथम सीढ़ी पर चढ़ने के लिये; परन्तु उस बेचारे को लेने के देने पड़ गये। उस लड़की ने अपनी माँ से सब कुछ जा सुनाया और उसकी माँ ने अपने बड़े लड़के से खुफिया ढंग से बात-चीत की और उसको फटकारा। परिणाम इसका यह हुआ कि आँख मारने के दूसरे ही दिन सायंकाल के समय जब अब्दुलगनी साहब हिकमत सीख कर घर आए, तो उनकी दोनों आँखें सूझी हुई थीं। सुनते हैं, जुविदा उर्फ जिदा चिक में से यह तमाशा देखकर बहुत ही प्रसन्न हुई। सैय्यद को चूँकि अपनी आँखें बहुत प्यारी थीं, इसलिये वह जुविदा के विषय में क्षण-भर के लिये भी सोचने को तैयार न था। अब्दुलगनी ने आँख के द्वारा प्यार का श्री-गणेश करना चाहा था। सैय्यद को यह ढंग बाज़ारी जान पड़ता था। यदि वह इसको अपना प्यार-भरा सन्देश देना चाहता तो अपनी जबान को हिलाता, जो दूसरे दिन ही काट दी जाती। मरहम पट्टी करने से पहले जुविदा का भाई कभी न पूछता कि क्या बात है ? बस, वह लज्जा के नाम पर छुरी चला देता, उसको इसका कभी विचार न आता कि वह छः लड़कियों का जीवन नष्ट कर चुका है, जिनकी कहानियाँ बड़े मज़े के सरथ अपने मित्रों को सुनाया करता था।

नं० ९ जिसका नाम उसको भी पता न था; परन्तु वह पश्मीने के व्यापारियों के यहाँ नौकरी करती थी। एक बहुत बड़ा घर था, जिसमें चारों भाई रहते थे। यह लड़की जो कश्मीर की पैदावार थी, इन चार

हवा के घोड़े

[२७