पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/२९

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भाइयों के लिये सर्द-ऋतु का शाल बन कर इनको आनन्द प्रदान करती थी। ग्रीष्म ऋतु में वे सब से सब कश्मीर चले जाते और वह अपनी दूर की बिरादरी में किसी स्त्री के पास चली जाती थी? यह लड़की जो अब स्त्री का रूप धारण कर चुकी थी, दिन में एक दो वार अवश्य ही उसकी नज़रों से गुजरती थी। इस लड़की को देखकर वह सदा यही विचार करता कि उसने एक नहीं, तीन चार स्त्रियाँ इकट्ठी देखी हैं। इस लड़की के विषय में जिसके विवाह के लिये चारों भाई चिन्ता कर रहे थे। उसने कई बार सोचा! वह इसके फुर्तीलेपन पर बहुत ही रीझ चुका था! वह घर का सारा काम-काज स्वयं ही संभालती थी। वह इन चार सौदागर भाइयों की बारी-बारी सेवा भी करती थी।

वह देखने में प्रसन्न दीख पड़ती थी। इन चार सौदागरों को; जिनके साथ इसके शरीर का सम्बन्ध था, वह एक ही दृष्टि से देखती थी। इस लड़की का जीवन जैसा कि दीख पड़ता है, एक आश्चर्य जनक खेल था, जिस खेल में चार व्यक्ति भाग ले रहे थे। उन चार व्यक्तियों में से प्रत्येक को यही समझना पड़ता था कि वह तीनों भाई मूर्ख है। जब इस लड़की के साथ उनमें से कोई मिल जाता तो वह दोनों मिलकर यह सोचते या समझते होंगे कि घर में जितने आदमी रहते हैं, सब के सब अन्धे हैं; किन्तु क्या वह स्वयं अन्धी नहीं थी? इस प्रश्न का उत्तर सैय्यद को नहीं मिलता था। यदि वह अन्धी होती तो एक ही समय में चार व्यक्तियों से सम्बन्ध पैदा न करती, हो सकता है वह इन चारों को एक ही समझती हो...क्योंकि स्त्री और पुरुष का शारीरिक सम्बन्ध एक जैसा ही होता है।

वह अपने जीवन की सुनेहली घड़ियाँ आनन्दमय व्यतीत कर रही थी। चार सौदागर भाई छुप-छुप कर कुछ न कुछ अवश्य ही देते होंगे; चूँकि जब पुरुष किसी भी स्त्री के साथ कुछ क्षण आनन्दमय व्यतीत करता है, तो उसके हृदय में उसका मूल्य चुकाने का विचार अवश्य ही

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हवा के घोड़े