पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/३१

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सन् इक्कतीस के शुरू होने में केवल रात के चन्द घन्टे ही शेष थे। सैय्यद रजाई में भी सर्दी अधिक होने के कारण काँप रहा था। वह पतलून और कोट पहने हुए ही लेट गया था; किन्तु ठंड की लहरें फिर भी उसकी हड्डियों तक पहुँच रही थीं। वह उठ खड़ा हुआ और अपने कमरे की हरी रोशनी में जो इस ठंड में एक नया प्लाट तैयार कर रही थी, उसने ज़ोर-ज़ोर से टहलना शुरू कर दिया ताकि खून फिर से गर्म हो सके।

थोड़ी देर इस प्रकार चलने-फिरने के पश्चात् जब वह गर्मी का अनुभव करने लगा तो वह आराम कुर्सी पर बैठ गया और सिगरेट जला कर अपना दिमाग़ टटोलने लगा। उसका दिमाग़ खाली था, इसी कारण वह कुछ तेज़ था। कमरे की सभी खिड़कियाँ बन्द थीं; परन्तु वह वाहर गली की हवा वाली गुनगुनाहट सरलता पूर्वक सुन रहा था।

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हवा के घोड़े