पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/३२

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इसी गुनगुनाहट में उसे किसी इन्सान की आवाज़ भी आने लगी? एक घुटी-घुटी चीख, वर्ष की अन्तिम घड़ियों वाली रात के सन्नाटे में चाबुक के मारने के समान उभरी, फिर किसी की प्रार्थनाभय आवाज़ काँपी और वह उठ खड़ा हुआ और खिड़की के सुराख में से गली की ओर निहारा।

वही ...वही लड़की अर्थात् सौदागरों की नौकरानी, बिजली के खम्बे के नीचे खड़ी थी, एक कम्बल, एक बनियान में बिजली की रोशनी में ऐमी दीख पड़ती थी कि उसके शरीर पर पतली सी बर्फ की तह जम गई हो। इस बनियान के नीचे उसकी बेढंगी छातियाँ नारियल के समान लटक रही थीं। वह इस ढंग से खड़ी थी, मानो अभी-अभी कुश्ती लड़कर अखाड़े से बाहर आई हो। इस अवस्था में देखकर सैय्यद के नन्हें और कोमल हृदय को बड़ा धक्का लगा।

इतने में किसी पुरुप की घबराई हुई आवाज़ आई..."खुदा के लिये अन्दर चली आयो ..कोई देख लेगा तो मुसीबत खड़ी हो जायेगी?" जंगली बिल्ली के समान लड़की ने गुर्रा कर कहा--"मैं नहीं आऊँगी ..बस एक बार जो कह दिया नहीं, आऊँगी।"

सब से छोटे सौदागर की आवाज़ आई, "खुदा के लिये ज़ोर से न बोलो ..कोई सुन लेगा, राजो ..?"

राजो ने अपनी लंडूरी चोटियों को झटका देकर कहा-"सुन ले, खुदा करे कि कोई सुन ले ..और यदि तुम मुझे इसी प्रकार अन्दर आने के लिये दुःखी करते रहे, तो मैं मुहल्ले भर को जगा कर सब कुछ कह दूँगी ..समझे?"

राजो सैय्यद को दीख रही थी, जिससे वह बोल रही थी, वह नहीं दीख पाया। जब सैय्यद ने बड़े सुराख में से राजो की ओर निहारा, तो उसके शरीर से कम्पन छूट पड़ी। यदि वह सारी की सारी नंगी

हवा के घोड़े
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