पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/३४

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है, यदि इन में से कोई जाग उठा या देख लिया, तो बड़ी शर्म का सामना करना पड़ेगा।"

राजो चुप रही; किन्तु थोड़ी देर के बाद बोली--"मुझे मेरे कपड़े ला दो। बस अब मैं तुम्हारे यहाँ न रहूँगी। मैं तंग आ गई हूँ, मैं कल से वकीलों के यहाँ नौकरी कर लूँगी ..समझे, यदि अब तुमने मुझसे कुछ भी कहा तो खुदा की कसम शोर मचा दूँगी ..मेरे कपड़े चुप-चाप लाकर दे दो।" ..सौदागर के लड़के की आवाज़ आई .. लेकिन तुम रात भर कहाँ रहोगी?"

राजो ने कहा--"जहन्नुम में, तुम्हें क्या जाओ अपनी औरत की गोद गर्म करो। मैं तो कहीं न कहीं सो जाऊँगी"... उसकी आँखों में आँसू थे ..आँसू? ...वह सच-मुच रो रही थी।

सुराख से आँख उठाकर सैय्यद पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया और सोचने लगा। राजो की आँखों में आंसू देख कर उसको दुःख हुआ। इसमें कोई आश्चर्य वाली बात नहीं कि उस दु:ख के साथ वह घृणा भी लिपटी हुई थी जो राजो को देखकर सैय्यद के हृदय में पैदा हुई थी; परन्तु बहुत कोमल हृदय होने के कारण वह शीघ्र ही पिघल-सा गया। राजो की आँखों में जो शीशे के अमृतबान में चमकदार मछलियों की तरह सदा प्यासी रहती थी, आँसू देखकर उसके हृदय ने चाहा कि उठ कर उसे दिलासा दे......

राजो के यौवन के चार कीमती साल सौदागर भाइयों ने मामूली चटाई की तरह प्रयोग किये थे। इन वर्षों पर चारों भाइयों के नक्शेकदम इस प्रकार घुल मिल गये थे कि इन में से अब किसी का भय ही नहीं रहा था कि कोई इनके पाँव के चिह्न देख लेगा। राजो के विषय में यह कहा जा सकता है कि वह अपने पाँव के चिह्न देखती थी न दूसरों के, बस केवल चलते जाने की धुन थी। किसी ओर भी; किन्तु

हवा के घोड़े
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