अब शायद उसने मुड़कर देखा था, मुड़कर उपने क्या देखा था, जो उसकी आँखों में आँसू आ गये? यह सैय्यद को मालूम नहीं था।
जिस चीज़ का पता न हो उस चीज़ को जानने के लिये सभी लालायित रहते है। कुर्सी पर बैठा सैय्यद देर तक अपनी जानकारी की उलट-पुलट करता रहा। जब उठकर उसने कुछ और देखने की चेष्टा करते हुए सुराख पर आँख जमाई, तो राजो वहाँ न थी। देर तक सुराख पर आँख लगाये खड़ा रहा; किन्तु उसे बिजली की श्वेत चाँदनी, गली के लम्बे फर्श और गन्दी नाली के सिवा, जिसमें पालक के अनगिनत डंठल पड़े थे और कुछ न दीख पाया।
बाहर सम्भवतः तीन का अन्तिम पहर दम तोड़ रहा था और उनका हृदय सलवियाँ-इञ्जन की तरह धक-धक करने लगा।
राजो कहाँ है? ...अन्दर चली गई है क्या? ...मान गई है क्या? परन्तु प्रश्न है कि वह किस बात पर झगड़ी थी?
राजो की काँपती हुई छातियाँ अभी तक सैय्यद की आँखों के सामने खड़ी थीं। अवश्य ही उसके और सौदागर के छोटे लड़के जिसका नाम "महमूद" है, किसी बड़ी भारी बात पर झगड़ा हो गया होगा। दिसम्बर की खून जमाने वाली रात में केवल एक बनियान और सलवार के साथ बाहर निकल आई थी। बहुत कहने सुनने पर भी अन्दर जाने का नाम नहीं लेती थी।
जब सैय्यद सोचता कि इनके झगड़े का कारण परन्तु वह इस कारण पर विचार ही नहीं करना चाहता था; कितनी भयंकर घटना थी, जो उसके सामने आ जाती थी, किन्तु वह सोचता कि यह बात झगड़े का कारण न होगी, क्योंकि वह दोनों इसके आदी थे। एक समय से, राजो इन सौदागर भाइयों को बड़े ढंग से एक थाल में भोजन खिला रही थी; परन्तु अब क्या हो गया था ? राजो के यह शब्द