पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/३६

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उसके कानों में जिद्दी मस्ती के समान भिनभिना रहे थे---जहन्नुम में...तुम्हें इससे क्या...जाओ तुम अपनी औरत की गोद गरम करो...मैं कहीं न कहीं सो जाऊँगी---इन शब्दों में बेदना थी।

इसको पीड़ित देखकर सैय्यद के नामालूम विचारों को शान्ति तो अवश्य ही पहुँची थी; परन्तु उसके साथ ही इसके हृदय में दया भी पैदा हुई थी। किसी भी औरत से उसने आज तक अपनी हमदर्दी प्रगट न की थी। वह इस को दुःखी देखना चाहता था, इसलिये कि वह उसकी हमदर्दी, जो उसके हृदय-पटल पर उसके नाम की लिख चुका है, प्रगट कर सके। वह उसको सहन कर सकती थी। यदि वह गली की किसी और लड़की से हमदर्दी प्रगट करता, तो मालूम है, कितनी बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ता। वास्तव में इस हमदर्दी का तात्पर्य कुछ और ही आधुनिक समाज वाले निकालते।

राजो के अलावा सभी लड़कियाँ इस प्रकार जीवन काट रही थीं, जिसमें ऐसे मौके कम ही मिलते हैं। जब इन से विशेष प्रकार की हमदर्दी की जा सकती है। यदि इस प्रकार के कुछ क्षण प्राप्त भी हों, तो वह एकदम इनके हृदय में दफ़न हो जाते हैं। आशाओं और तमन्नाओं की यदि कब्रें बनती है, तो फ़ातिहा पढ़ने की इज्जात नहीं मिलती या इसका मौका ही नसीब नहीं होता। यदि प्यार की कोई चिता तैयार भी होती है, तो आस-पास के लोग इस पर राख डाल देते हैं कि चिंगारियाँ न उठ सकें।

सैय्यद विचार करता कि यह कितना दुःख से भरा और बनावटी जीवन है। किसी को भी आजादी नहीं कि जिन्दगी के गड्डे किसी को दिखा सके? वह व्यक्ति जिनके पाँव मजबूत नहीं, इनको अपनी लड़खड़ाहटें छिपानी पड़ती हैं; क्योंकि इस प्रकार की रीत है। प्रत्येक व्यक्ति को एक जीवन अपने लिए और एक दूसरों के लिए व्यतीत


हवा के घोड़े

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