पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/३८

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औरत न थी। वह जैसी भी थी, दूर से नज़र आ जाती थी। उसको देखने के लिये खुर्दबीन या किसी यन्त्र की आवश्यकता न थी। वह बिल्कुल साफ थी। उसकी भद्दी और मोटी हमी, जो उसके मटमैले अधरों पर बच्चों के टूटे हुए मिट्टी के मकानों के समान दीख पड़ती थी। हँसी में सत्यता थी, बड़ी स्वस्थ और अव के उसकी सदा प्रसन्न रहने वाली आँखों ने दो मोटे-मोटे आँसू ढलका दिये थे, इनमें बनावटीपन न था। राजो को सैय्यद बहुत दिनों में जानता था। उसकी आँखों के सामने उसके मुख की रेखाएँ बदली थीं। वह लड़की मे औरत का रूप धारण करने में लगी हुई थी, क्योंकि उसके अन्दर एक की जगह तीन-चार औरतें थीं, यही कारण है कि चार व्यापारी भाइयों को जनसमूह न समझती थी, लेकिन वह जन-समूह सैय्यद को पसन्द न था। इसीलिये वह केवल एक और के साथ एक ही पुरुप को सदा देखने का इच्छुक था; किन्तु यहाँ 'राजो' के मामले में पसन्द या न पसन्द के बीच में रुक जाना पड़ता था; क्योंकि कई प्रकार के विचार उसके दिमाग में इकट्ठे होते और कई बार तो उसे बिचोलिया बनकर राजो को दाद देनी पड़ती। यह दाद किस कारण थी, यह वह नहीं जानता था? इस कारण विचारों की भीड़-भाड़ में वह उस पर विचार करने में सदा भूल करता, जो उस वेदना का इच्छुक होता है इसलिये।

गली के अच्छे और बुरे सभी राजो को भली-भाँति जानते है। मौसी 'मखतो' गली की सब से बड़ी प्रायु वाली स्त्री है। उसका मुख ऐसा है जैसे पीले रंग के सूत की अटियाँ बड़ी लापरवाही से नोच कर एक दूसरे में से उलझा दी हों । यह बुढ़िया भी, जिसको कम दिखाई देता है और कान जिसके सुनने से दूर रहते हैं, अर्थात् बहरे है, राजो से चिलम भरवा कर, उसके विषय में अपनी बहू सैया से, जो कोई भी उसकेपास हो, कहा करती थी--"इस छोकरी को घर में अधिक मत आने-जाने दिया करो, वरना किसी दिन अपने प्यारे खसमों से हाथ धो

हवा के घोड़े
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