पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/३९

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बैठोगी" "यह कहते समय बुढ़िया का बीता हुआ यौवन उसके मुख की झुरियों में जवानी की याद ताजा कर देता था..।"

राजो की अनुपस्थिति में सब इसको बुरा ही कहते थे। इस प्रकार के पाप के लिए खुदा से पश्चात्ताप करते थे, अर्थात् क्षमा माँगते थे, ताकि आगे चलकर उनसे कहीं मिल जाए। स्त्रियाँ जब राजो के विषय में बात करती थीं, तो अपने आप को उच्च चरित्र वाली स्त्री समझती थीं और मन ही मन में यह विचार कर अभिमान का अनुभव करती थीं कि उनके दम से ही चरित्र की रक्षा हो रही है..।

सब राजो को बुरा समझते थे किन्तु आश्चर्यजनक बात हैं कि उसके सम्मुख किसी ने भी घृणा प्रकट नहीं की थी? इसके अतिरिक्त बड़े प्रेम और आदर सहित उससे बातें करते थे। शायद इसका कारण वही नाम-नहाद चरित्र की चर्चा हो; परन्तु इस भले व्यवहार में राजो की खिलखिलाट और दूसरों को प्रसन्न-चित्त करने वालों का भी कुछ अधिकार था। सौदागर के घर से काम-काज से छुट्टी पाकर जब किसी पड़ौसी के यहाँ जाती भी तो वहाँ भी बेकार बैठकर बातें न बनाती थी। कभी किसी के बच्चे का पोतड़ा बदल दिया, कभी किसी की चुटिया गूँथ दी, कभी किसी के सिर से जुएँ निकाल दी, मुट्ठी-चापी कर दी, वास्तव में वह बेकार कहीं भी नहीं बैठ सकती थी। उसके मोटे-मोटे हाथों में बला की तेजी थी। उसका हृदय जैसा कि प्रतीत होता है, हर समय इस खोज में रहता कि किसी को प्रसन्न करने का ढंग निकाला जाए।

राजो दूसरों को प्रसन्न करने में कई-कई घण्टे व्यतीत करने देती थी; किन्तु कृतज्ञता और धन्यवाद के शब्द सुनने के हेतु वह एक क्षण भी न ठहरती थी। मौसी 'मखतो' की चिलम भरी, सलाम किया और चल दी, मुनसफ साहब को बाजार से फालूदा लाकर दिया,

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हवा के घोड़े