पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/४०

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उनके बच्चे को थोडी देर गोद में खिलाया और चली गई। गुलाम मुहम्मद नेचागर की बूढ़ी दादी की पिंडलियाँ थपकी और उसका आशीर्वाद लिए बिना ही चल दी ..।

यह गठिये की भारी बुढ़िया, जो अपने जीवन में ऐसी मंजिल पर पहुँच गई थी, जहाँ उसका नाम होने या न होने के समान था। गुलाम मुहम्मद जिसे बेकार हुक्के के नेचे के समान समझता था। राजो के हाथों वह एक अद्भुत प्रसन्नता का अनुभव करती थी। इसकी अपनी बेटियाँ उसके पाँव दबाती थीं; किन्तु उनकी मुट्ठियों में वह रस नहीं था, जो "राजो" के हाथों में था। जब राजो उसकी पिंडलियाँ दबाती, तो उसे देवता मानती; किन्तु उसके चले जाने के पश्चात् ही कहा करती--"हरामज़ादी में इस प्रकार नै पाँव दबा-दबाकर उन सौदागर बच्चों को फांसा होगा ..?"

विचारों के अथाह समुन्द्र की लहरें सैय्यद को न मालूम कहाँ से कहाँ तक ले गई--एक दम! वह चौक पड़ा और सुराख पर आँख रख कर उसने फिर बाहर की ओर देखा। बिजली की चमक गली में ठिठुर रही थी। रात के सन्नाटे को गनगुनाहट सुनाई दे रही थी, परन्तु राजो वहाँ न थी।

उसने खिड़की को खोला और बाहर झाँककर देखा। इस किनारे से उस किनारे तक रात की ठण्डी चल रही थी। ऐसा दीख पड़ता था कि बिजली के उस खम्बे तले कभी कोई खड़ा ही न था? सफेद रोशनी में अद्भुत सन्नाटा मिला हुआ था। उसका दिल भर आया, उस का जीवन और अफीम खाने वाले व्यक्ति के मुख की प्राकृति गली से कितनी मिलती जुलती है?

सैय्यद ने खिड़की के द्वार बन्द कर दिये और सोने के विचार से उसने रज़ाई अपने ऊपर डाली तो एक बार फिर ठण्डी उसकी हड्डियों तक पहुँचने लगी।

हवा के घोड़े
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