पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।


नया साल धूप सेंक रहा था। सैय्यद अभी तक बिस्तर में ही पड़ा था, केवल लेटा ही नहीं, अपितु गहरी नींद सो रहा था। वह रात भर जागता रहा, सात बजे के लगभग उसकी आँख लगी थी। यही कारण है कि बारह बजने पर भी उसने जागने का नाम न लिया था।

सिरहाने लगे घंटे ने भी बारह बार टन-टन की; किन्तु धातु की ध्वनि के स्थान पर उसके कानों ने राजो की आवाज़ सुनी, जैसे बड़ी दूर से आ रही हो। वह घबड़ा उठा और इस प्रकार जागने के हेतु वह ऐसा अनुभव करने लगा, मानो वह घबड़ा कर उठा हो। उसके रेशमी पाज़ामे ने फिसल कर उसकी क्षमता का परिचय दे ही दिया और इसकी हल्की-फुलकी निद्रा ने आँखें खोली, उसकी बौखलाहट में

४० ]
हवा के घोड़े