और भी वृद्धि हुई, जब उसने राजो को अपने सामने खड़े देखा... एक दम उसकी नजरें खिड़की की ओर उठी, राजो की ओर मुडी और वहाँ से दरवाजे की ओर घूमी। फिर फैल कर अन्त में राजो पर जम गई राजो ने घड़ी की ओर देखा, और कहा--"मियाँ जी बारह बज गए है। माँ जी, आपको बुलाती हैं, चाय तैयार है।"
यह कह कर राजो ने घंटे में चाबी देना शुरू कर दिया, इसके पश्चात्त उसने तिपाई पर से पानी का गिलास उठाया और चल दी।
इसका मतलब क्या है...? क्या राजो सौदागरों के यहाँ से नोकरी छोड़ कर यहाँ आ गई है। सैय्यद कुछ भी समझ नहीं पा रहा था कि क्या बात है? उसकी माँ बहुत कोमल हृदय की है। वह जानती थी, राजो का चरित्र ठीक नहीं; परन्तु, इन सब बातों के बाद भी वह कुछ नहीं कहती थी। मन के विचार खुदा ही जानता है, चाहे हृदय में कुछ भी हो। सैय्यद अन्त में इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इसकी माँ भी खुदा-तरस है। खुदा तरसी इस हद तक इसके दिल पर छाई हुई थी कि वह किसी को भी बुरा नहीं कह सकती थी? जब उस सन्ती के किसी व्यक्ति ने चोरी की तब वह कहा करती थी, बेचारे को जरूरत ने मजबूर किया होगा।
राजो की बुराइयाँ सुनकर इसने कई बार कहा था। किसी ने आँख से तो इसकी बुराइयाँ देखी नहीं, क्या पता सब बदनाम करने के लिए विसी ने इसे सोच रखा हो...अल्लाह-ताला से हर समयडरना चाहिये, हम स्वयं ही बड़े भारी पापी है?
सैय्यद की माँ अपने आप को संसार की सब से बड़ी गुनाहगार स्त्री समझती थी। एक बार सैय्यद ने हँसी-हँसी में अपने माँ से कहा था-"माँ जी! आप हर समय कहती रहती है, मैं गुनाहगार हूँ, मैं