पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/४३

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गुनाहगार हूँ, कहीं ऐसा न हो यम आप को सचमुच गुनाहगार समझकर नरक में धकेल दें। हाँ, यह तो बताओ उस समय भी आप यही कहेंगी, मैं गुनाहगार हूँ, मैं गुनाहगार हूँ।"

उसकी माँ पाँच वक्त बे-नागा नमाज़ पढ़ती थी, नियाज देती थी। मतलब यह कि वह सभी बात मानती थी, जो एक गुनाहगार को माननी चाहिएँ ...।

सैय्यद अधिक समय तक सोच-विचार मे डूब कर इस परिणाम पर पहुँचा; क्योंकि मेरी माँ नमाज़ पढ़ना और रोजे रखना पसन्द करती है, इसी कारण वह अपने आपको गुनाहगार समझती है और अब नमाज-रोज़े पढ़ने की आदि बन गई है, इस लिए हर समय गुनाह का विचार भी इसकी आदत में घुस चुका है।

सैय्यद गुनाह और शबाब के चक्कर में अपने मस्तिष्क को फँसाने ही वाला था कि उसे राजो का विचार आया, जो अभी-अभी इसके कमरे से बाहर गई थी...दो बातें हो सकती हैं, या तो वह सौदागरों की नौकरी छोड़ कर हमारे यहाँ चली आई है और मेरी माँ ने जवानियों में एक और जवानी की वृद्धि करने के लिये उसे अपने पास रख लिया है, या फिर सौदागरों के ही पास है और वैसे ही इधर आ निकली है। जैसा कि इसकी आदत है, शीशे का गिलास उठा कर ले गई है, जो तिपाई पर व्यर्थ पड़ा इधर-उधर झांक रहा था; किन्तु रात वाली घटना .? उसने राजो के मुख पर जो इस घटना के बुझे हुए चिह्न देखने की चेष्टा की थी; परन्तु वह कोरी स्लेट के समान साफ़ थी।

एक दम सैय्यद का हृदय बिना किसी बात के घृणामय विचारों से लीन हो उठा? उसे राजो से घृणा थी, वह अपने मस्तिष्क की तख्ती पर सदा राजो की तस्वीर बनाया करता था। हमेशा इन मैले

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हवा के घोड़े