पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/४५

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आराम कुर्सी पर बैठ गया। अभी वह कुर्सी पर पूर्णतया गव न फैला पाया था कि राजो ने कमरे में प्रवेश किया। बिना कहे या सुने, उसने एक-एक करके सभी खिड़कियां खोली और झाड़ पोंछ कर दी। सैय्यद इसके नटखटपन को ध्यान पूर्वक देखता रहा। राजो के मोटे-मोटे हाथों की मोटी-मोटी कलाइयों में जरा भी आकर्षण शक्ति न थी... शीशे के फूलदान को ऐसे ढंग से इस अदा से साफ किया, जिस तरह लोहे के कलमदान को साफ किया जाता है। झाड़न द्वारा इसने तस्वीरें जिन पर गर्द ने अपना पूर्ण अधिकार जमा रखा था, साफ की, कानस पर रखी सभी वस्तुओ को एक-एक करके उस ने साफ किया, इम दंग से जिसमें आहट न हो। जब वह बातें करती तो ऐसा प्रतीत होता कि इसकी आवाज़ रूई के नरम-नरम गालों में लिपटी हुई हो। कान के पर्दे इसकी आवाज़ से न टकरा पाते थे; केवल बाहर ही छूकर वापस आ जाती थी। इसकी प्रत्येक आवाज़ और अन्दाज ने रबड सोल जूते पहन रखे थे। सैय्यद इसे देखता रहा..नहीं उसे सुनने की चेष्टा करता रहा।

राजो ने नीलगगन के समान रंग का ऊनी कमीज पहन रखा था, जो कुहनियों पर से फटा हुआ था। यह कमीज़ शायद सौदागरों के सब से बड़े बच्चे ने दिया हो। इसके ऊपर गरम स्वेटर पहन रखा था, जिस पर जगह-जगह मैल के गोल-गोल निशान दीख रहे थे। खादी की सलवार अधिक प्रयोग के कारण सल्वार के रूप में नहीं दीख पड़ती थीं, यह प्रतीत होता था कि इसने अपने टाँगों में चादर लिपटा रखी हो। अधिक समय तक ध्यान-पूर्वक देखने के पश्चात इस सलवार के पहुँचे दीख पड़ते थे, जो इतने खुले थे कि पाँव बिल्कुल छुप जाने के कारण नहीं दीख पाते थे।

सैय्यद इसके पहुँचों की ओर देखता रहा कि राजो मुड़ी, यह

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हवा के घोड़े