पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/४७

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जानता है क्या गड़बड़ हो रही थी?...हाँ तो मै और कुछ न लेकर केवल एक कप चाय ही लूँगा और उसके बाद भोजन करूँगा, अर्थात् नियम-पूर्वक समय पर ..माँ जी कहाँ है? मैं स्वयं पता कर लूँगा.. किन्तु तुम .तुम यह क्या कर रही हो, मेरा आशय है कि मेरे कमरे की सफाई करने को किसने कहा है, यानी तुम यहाँ कैसे आई हो?...तुम तो सौदागरों के यहाँ थीं।"

एक ही सांस में सैय्यद सारी बातें कह गया और चोर नज़रों में उसके मुख की ओर निहारता रहा। लाली की रेखा का मध्यम सा उसे दीख पड़ा था। जब बाहर गली में गड़बड़ की ओर संकेत किया था; परन्तु इसके पश्चात्त इसके मुख-मंडल में कोई परिवर्तन न देख सका, किन्तु हँसी ने इसके मुख पर जो फैलाव पैदा कर दिया था, वह अभी तक इसके साथ घटी घटनाएँ देख रहा था।

राजो ने कोई उत्तर न दिया और कमरे से बाहर चली गई, जैसे इससे कुछ पूछा ही न हो। इस पर सैय्यद को बहुत गुस्सा आया, इसमें सन्देह नहीं कि मैंने कुछ पूछने के लिए इससे बातें नहीं की, किन्तु बिना विचार के वैसे ही कहता चला गया, जिनका कोई सम्बन्ध नहीं था? परन्तु मेरी इच्छा थी, इच्छा क्या मुझे पूर्णतया विश्वास था कि वह घबरायेगी और रात की घटना उसके मुख से फूट निकलेगी; परन्तु वह स्त्री है या ..या क्या है?

सैय्यद इसकी वाबत विचार नहीं करना चाहता था; किन्तु कोई न कोई बात ऐसे आकर सामने खड़ी हो जाती कि इसे फिर सोच विचार करना पड़ जाता था। यह स्त्री उसके जीवन में ख्वाम-खाह दाखिल होती चली आ रही थी। यह दाखिला सैय्यद को अच्छा न लगा, चुनांचे इसने निश्चय कर लिया कि वह इसे अपने घर में न रहने देगा।

जब वह अपनी माता से रसोई-घर में मिला, तब वह राजो के

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हवा के घोड़े