पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

विषय में कुछ चाहता हुआ भी न पूछ सका। उसकी माँ ने जो उसे बहुत ही प्यार करती थी चाय का प्याला बना कर कहा--"बेटा रात तेरे दुश्मनों को क्यों नींद नहीं आई? मुझे राजो ने अभी कहा है कि गली में कुछ गड़-बड़ थी। इस कारण तू सो न सका ..मैने तो कुछ भी नहीं मुना.. मैं कहती हूँ! यदि तुम मेरे वाले कमरे में सोया करो तो क्या हर्ज है? मेरी भी घबराहट दूर हो जायी"--"ले बाबा मैं कुछ नही कहती, जहाँ चाहे सो जाया कर अल्लाह तेरी देख-भाल करेगा . ले चाय पी...मैं तुझ से कुछ नहीं कहती .।"

वास्तव में सैय्यद राजो के विषय में कुछ कहना चाहता था, किन्तु इसकी माँ ने समझा कि वह यही कहेगा, माँ जी आप तो वैसे ही घबराया करती हैं। मैं अकेली ही सोने का आदि हूँ। किन्तु वह चुप हो रहा। उधर उराकी माँ ने उसकी हठ पर अधिक वाद-विवाद न किया। राजो चूल्हे के समीप शान्त चित बैठी सब कुछ...देखती रही।

हवा के घोड़े
[४७