पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/४९

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सैय्यद के घर राजो को नौकरी करते एक महीना बीत गया; परन्तु इस एक महीने के लम्बे समय में भी वह माँ से कुछ कह न सका, जो कहना चाहता था कि राजो को निकाल दो। अब साल के दूसरे महीने का प्रारम्भ था। सर्दी धीरे-धीरे ताप में ढल कर, निराला रूप धारण कर रही थी। दिन और रात बसन्त की प्रभात, मीठे-मीठे गीत, मीठी-मीठी सौगात, मन को मोह लेती है। पंजाब में यह महीना बहुत ही अच्छा माना जाता है। सवेरे जब वह सैर को जाता, तो हल्की-फुल्की खुश्क वायु का सेवन काफी देर तक करता रहता--उसे प्रत्येक वस्तु सुन्दर दीख पड़ती..।

इन्हीं दिनों की बात है कि एक दिन वह कम्पनी बाग़ से सवेरे सैर से वापिस घर आया, तो उसे अपना शरीर गर्म-सा महसूस हुआ। बिस्तर पर लेटते ही ज्वर हो गया। उसके पुराने मित्र ने भी अपना

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हवा के घोड़े