पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/५०

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करिश्मा दिखाया, यानी जुकाम भी बड़े जोर में हो गया और उसका नाक बेजान-सी हो गई। दूसरे दिन खाँसी भी आ गई और तीसरे दिन छाती में दर्द और धीरे-धीरे बुखार १०५ दरजे तक पहुँच गया। उसकी माँ ने पहले दिन ही डाक्टर को बुलाया था; परन्तु उसकी दवाई से कुछ लाभ न हुआ।

आश्चर्यजनक बात है, जब सैय्यद को बुखार अधिक चढ़ जाता, तो उसका दिमाग़ थोड़ा तेज हो जाता। ऐसी-ऐसी बातें उसके दिमाग में आतीं, जो वह वैसे कभी न सोच पाता था। विचार की शक्ति उतनी तेज हो जाती कि शरीर में बेचैनी पैदा कर देती कि वह घबड़ा उठता, उसके हृदय पर नये-चक्कर की रेखाएँ अङ्कित हो जातीं, जब उसे अधिक बुखार चढ़ता, जिनका विचार वह मामूली अवस्था से न कर पाता था। वह अनुभव करता कि उसके सभी विचार सान पर लगा कर नोकीले और तेज़ हो गए हैं ..।

बुखार की अवस्था में वह संसार की सभी समस्याओं पर विचार करता, एक नई रोशनी में नए अनोखे अन्दाज़ में वह संसार की बुरी से बुरी वस्तु पर विचार करता, चिट्ठियों को उठाकर नील गगन पर नन्हें-नन्हें इन चमकते हुए सितारों के साथ चिपटा देता ओर उन सितारों को तोड़ पृथ्वी पर फेंक देता।

बुखार १०५ डिग्री मे कुछ बढ़ा, तब सैय्यद के दिमाग का इतिहासपृष्ठ उलटने लगा। क्षण भर में सैकड़ों नहीं, हज़ारों पृष्ट उल्टे और प्रसिद्ध-प्रसिद्ध घटनाएँ ऊपर-तले खट-खट करते, उसके दिमाग में से होते हुए निकल गए। बुखार कुछ और बढ़ा, तो पानीपत का युद्ध, ताजमहल के श्वेत भवन में लोप हो गया, तब कुतुब साहब की लाठ कटी हुई भुजा के समान बन गई और धीरे-धीरे चारों ओर धुन्धलाहट ही धुन्धलाहट छा गई।

हवा के घोड़े
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