पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/५१

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एकदम जोर का धमाका हुआ और धुन्धलाहट में से महमूद गजनी बड़ी तेजी के साथ घोड़े पर चढ़ा हुआ अपनी सेना के साथ प्रगट हुआ और महमूद ग़जनवी का घोड़ा सोमनाथ के जगमग-जगमग करते मन्दिर के स्वर्णमय द्वार पर जा रुका। महमूद ग़जनवी ने उन टूटे हुए हीरे और मोतियों के ढेर को देखा और उसकी आँखें तमतमा उठी, फिर उसने सोने की बनी उस मूर्ती को निहारा तब उसका हृदय धड़कने लगा---राजो महमूद गजनवी ने सोचा यह साली राजो कहाँ से टपक पड़ी उसके राज्य में? उस नाम की कौन स्त्री है क्या वह इसे जानता है क्या वह इससे प्यार करता है प्यार का विचार आते ही महमूद गजनवी ने जोर का ठठाहाका मारा महमूद गजनवी और प्यार! महमूद गजनवी को अपने बनाए हुए गुलाम से प्यार है और फिर इस नौकर राजो से कैसे हो सकता है?

महमूद गजनवी ने उस स्वर्ण भूति पर चोट पर चोट लगानी शुरू कर दी। आशय कि जब पेट पर लगा, तब वह फट गया और इसमें से शाहबुद्दीन की खीर और फालुदा निवालने लगा। महमूद गजनवी ने देखा तो हथोड़ा उठाकर अपने सिर पर दे मारा।

सैय्यद का सिर फट रहा था। महमूद गजनवी के सिर पर जो हथोड़ा पड़ा था, उसका धमाका उसके सिर पर गूँज रहा था। जब उसने करवट ली तो छाती में कोई ठण्डी-ठण्डी वस्तु के रेंगने का अनुभव हुआ.. सोमनाथ और स्वर्णमयी मूर्ति उस के दिमाग़ से निकल गई धीरे-धीरे उसने भट्टी के अंगारों के सामने जलती हुई अपनी आँखें खोलीं...राजो, फर्श पर बैठी पानी में भिगो-भियो कर कपड़े की गद्दियाँ उसके माथे पर रख रही थी।

जब राजो ने माथे पर से कपड़ा उतारने का प्रयत्न किया तव सैय्यद ने उसका हाथ पकड़ लिया और हृदय पर रख कर धीरे-धीरे

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हवा के घोड़े