पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/५२

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प्यार से अपने हाथ द्वारा उन हाथों को प्यार करने लगा। उसकी लाल-लाल आँखें दो अँगारे बन कर देर तक राजो की ओर देखती रहीं। राजो उसकी आँखों का सामना न कर सकी और अपने हाथ छुड़ा कर काम में लग गई।

इसके बाद वह बिस्तर से उठ कर बैठ गया और कहने लगा--"राजो ..राजो ..इथर मेरी ओर देखो। महमूद गजनवी...इसका मस्तिष्क अशान्त होने वाला ही था, कि उसने अपने को संभालते हुए, महमूद गजनवी के विचार को झटक कर पुनः कहा--"इधर मेरी ओर देखो!" जानती हो, मै तुम्हारे प्यार मे बँधा हुआ हूँ, बहुत बुरी तरह से तुम्हारे प्यार में फँसा हुआ हूँ। इस प्रकार फंस गया हूँ, मानो जैसे कोई दलदल में फँस गया हो ..मैं जानता हूँ कि तुम प्यार के लायक नहीं हो; किन्तु मैं सब कुछ जानते हुए भी तुम से प्यार करता हूँ। धिक्कार है मुझ पर...अच्छा छोड़ो इन बातों को--इघर मेरी ओर देखो। खुदा के लिए मुझे तंग न करो, मैं बुखार में इतना नहीं जल रहा राजो--राजो मैं--मैं उसकी विचार शृंखला टूट गई और उसने 'मुकन्द लाल भाटिया' से कुनीन के नुक्से पर वाद-विवाद शुरू कर दिया।

"डा० भाटिया, मैं आप को कैसे समझाऊं, यह कुनीन बहुत नुक़सान देने वाली वस्तु है। मैं मानता हूँ कुछ समय के लिये मलेरिया के कीटाणुओं को मार देती; किन्तु प्राकृतिक रूप में बीमारी दूर नहीं कर सकती। इसके अलावा इसकी तासीर बहुत ही खुश्क और गरम है, इसी कारण मेरे कान बन्द हो गए हैं और मेरा दिमाग़ भी बन्द हो गया है। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि किसी ने मेरे कानों और दिमाग़ में स्याही-चूम ठोस दिए हों। मैं अब ज़रा भी कुनीन नहीं खाऊँगा और नजनवी के बुत के समान सोमानाथ राजो...तुम

हवा के घोड़े
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