पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/५३

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सोमनाथ नहीं जाओगी--मेरे माथे पर हाथ रखो ..आह . आह . यह क्या बदतमीजी है, मैं ..मै...मेरे दिमाग में अनगिनत विचार उठ रहे हैं? माँ जी आप क्यों हैरान हो रही हैं, मुझे राजो से प्यार है, हाँ! हाँ!! इस राजो से, जो सौदागरों के यहां नौकर थी और जो अब आपके पास नौकरी कर रही है। आप नहीं जानती, इसने मुझे कितना जलील बना दिया है? इसलिये कि मैं इसके प्यार में फँसा हुआ हूँ। यह प्यार नहीं, हीजड़ापन है--दुःखी हीजड़े से भी बढ़ कर है और इसका इलाज नहीं है। मुझे इन मुसीबतों को सहन करना पड़ेगा, और सारी गली का कूड़ा अपने सिर पर उठाना होगा, गन्दी गाली में हाथ डालने होंगे,यह सब कुछ होकर रहेगा--यह सब कुछ होकर रहेगा। धीरे-धीरे सैय्यद का स्वर बैठता गया और बेहोशी के चिह्न दीखने लगे। उसकी आँखें गीली थीं; किन्तु फिर भी ऐसा अनुभव होता था कि पलकों पर बोझ सा आ पड़ा है। राजो पलँग के समीप उसकी बे-जोड़ ध्वनि को सुनती रही; परन्तु उस पर इन बातों का कुछ भी प्रभाव न पड़ सका ..और यह इस प्रकार के बहुत से रोगियों की सेवा कर चुकी थी।

बुखार की हालत में जब उसने अपने प्यार का चिट्ठा राजो को सुनाया, तो राजो ने क्या अनुभव किया? इसके विषय में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। इसलिये उसका गोश्त से भरा हुआ चेहरा विचारों से बिल्कुल खाली था। हो सकता है कि उसके हृदय के किसी हिस्से में थोड़ी बहुत सरसराहट पैदा हुई हो; किन्तु मोटे माँस की जिल्द की तह से निकल कर बाहर न आई हो, या न आ सकी।

इसने रूमाल निचोड़ा और ताजे पानी में भिगो कर उसके माथे पर रखने के लिये उठी। अब की बार इसे इस कारण से उठना पड़ा कि सैय्यद ने करवट बदल ली थीं। अब इसने सैय्यद का सिर धीरे से

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हवा के घोड़े