पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/५४

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इधर मोड़ कर माथे पर भिगा हुआ रूमाल रख दिया। अचानक ही सैय्यद की आँखें जो अर्द्ध नींद के पर्दे में पड़ी हुई थी, ऐसे खुलीं, जिस प्रकार लाल-लाल जख्मों के मुँह टाँके उधड़ जाने पर खुल जाती है। उसने क्षण भर के लिये राजो के झुके हुए मुख की ओर देखा, जिस पर कपोल थोड़े से नीचे की ओर लुढक आए थे। एक दम, उसने राजो को अपनी भुजाओं में जकड़ कर इतने जोर से सीने के साथ लगाया कि उसकी रीड़ की हड्डी कड़-कड़ बोल उठी। उठ कर उसने राजो को अपनी रांनो पर लिटा लिया और इसके मोटे-मोटे गुद-गुदे अधरों पर इतने जोर से अपने तपते हुए अधरों को रखा, जैसे वह गरम-गरम लोहे से इसे दाग़ देना चाहता हो?

सैय्यद की भुजाओं में वह इस ढंग से फँसी हुई थी कि लाख प्रयत्न करने पर भी अपने को स्वतन्त्र न करा सकी। सैय्यद के अधर देर तक इसके अधरों पर प्रस करते रहे और फिर एक ही झटके में हाँफते-हाँफते उसने इसको अपने से दूर कर दिया और उठ कर ऐसे बैठ गया, मानो उसने कोई बुरा स्वप्न देवा है? राजो एक ओर सिमट गई, वह डर गई थी। उसके पेपड़ी-जमे अधर फड़क रहे थे।

राजो ने तेज निगाहों से देखा! तब वह इस पर बरस पड़ा और कहने लगा--"तुम यहाँ क्या कर रही हो, जाओ! जाओ!" यह कहते-कहते सैय्यद ने अपने सिर को दोनों हाथों से थाम लिया, मानो वह गिरने लगा हो। इसके बाद वह लेट गया और धीरे-धीरे बुड़बड़ाने लगा, राजो...मुझे माफ़ कर दो, मुझे माफ़ कर दो, मुझे कुछ भी मालूम नहीं, मैं क्या कर रहा हूँ या कह रहा हूँ, बस केवल एक बात ही जानता हूँ कि मुझे पागल-पन की हद से भी अधिक तुम मे प्यार है...ओह मेरे अल्लाह, हाँ मुझे तुम से प्यार है, इसलिये नहीं कि तुम प्यार करने योग्य हो, इसलिये नहीं तुम मुझ से प्यार करती हो...फिर

हवा के घोड़े
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