पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/५८

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बिस्तर पर सैय्यद ने कठिनता से करवट बदली। ठंडे पानी ने उसके मारे शरीर में कंपकपाहट-सी दौड़ा दी। राजो की ओर आश्चर्यजनक दृष्टि से देखा और पूछा--"क्या कह रही हो तुम?" फिर क्षण भर में ही, उसे जब ख्याल आया कि बेहोशी में इससे अनगिनत बातें कर चुका है और अपना प्यार भी इस पर प्रगट कर चुका है, तो उसे अपने आप पर बहुत गुस्सा आया। मलेरिया के कारण उसके मुंह का स्वाद भी बिगड़ा हुआ था, अब इस गलती के कारण ने उसके मुँह में अधिक कड़वाहट पैदा कर दी और उसको अपने आप से घृणा होने लगी।

मुझे राजो से बात नहीं करनी चाहिए थी . राजो पर अपने प्यार को प्रगट, किसी भी अवस्था में नहीं करना चाहिए था? इसलिए कि वह इसके योग्य ही नहीं। मैने राजो को अपने हृदय के भाव नहीं बनाए; अपितु अपने सारे शरीर को एक गन्दी-नाली में फेंक दिया है। इसमें कोई शकू की बात नहीं, मैने नीम-बेहोशी की अवस्था में यह गलती की, यदि मैं कोशिश करता, तो अपनी भावुकता को रोक सकता था, मुझ में इतनी क्षमता है; किन्तु खेद इस बात का है कि विचार पहले नहीं पाया और इसी कारण अनाप-शनाप बकता रहा।

जो कुछ वह राजो से कह चुका था, उसका शब्द तो सैय्यद को याद नहीं था; परन्तु वह विचार कर सकता था कि उसने इससे क्या कहा होगा? वह इससे पूर्व विचारों के अथाह समुन्द्र में डूबकर राजो से कई बार बातें कर चुका था और वह लज्जा का अनुभव कर रहा था; परन्तु वह सचमुच इससे बातें कर चुका था और इस पर अपने प्यार को प्रगट किया था। दूसरे शब्दों में इसको वह राज़ भी बता चुका था; जिन से वह स्वयं भी दूर रहना चाहता था...यह सैय्यद के जीवन की सब मे बड़ी धारणा थी।

हवा के घोड़े
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