पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/५९

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राजो उसके सम्मुख खड़ी थी। मलेरिया उस पर अपने बर्फीले हाथ फेर रहा था। एक ऐसी झुरझराहट, उसकी रग और रेशे में कनखजूरे के समान रेंग रही थी और उसके हृदय में एक ऐसी तलखी उत्पन्न हो रही थी; जो उसने इससे पूर्व कभी नही महसूस की थी। वह चाहता था कि उसे एकदम, उसे इतना बुखार चढ़े कि बेहोश हो जाए, ताकि जो कुछ हुआ है, उसका, उसके हृदय से प्रभाव कुछ समय तक, दूर हो जाए।

बड़ी कठिनता से उसने स्वयं को राजो से यह कहने का साहस किया--"जाओ माँ जी को यहां भेज दो, मै यहाँ मर रहा हूं, कुछ मेरा भी तो ख्याल करें।" इस पर राजो ने धीरे से कहा--"पाप ही के लिए सौ नकल पढ़ रही है। मैं जाकर देखती हूँ खत्म हुए हैं या नहीं।"

"...जाओ...खुदा के लिए जाओ .." यह कहकर सैय्यद ने रज़ाई अपने ऊपर डाल ली और अधिक ठंडक होने के कारण, जो मलेरिया के ताजे हमले का चिह्न थी। ज़ोर-ज़ोर से कांपना शुरू कर दिया।

राजो कमरे से बाहर चली गई।

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हवा के घोड़े