पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/६३

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सैय्यद बहुत ही प्रसन्न था या समझ लें कि वह अपने आप को प्रसन्न करने की चेष्टा कर रहा था। वास्तव में वह राजो को किसी न किसी ढंग से भूल जाना चाहता था? कई बार उसको उन बातों का विचार आता, जो उमने बुखार की हालत में की थी; किन्तु वह तुरन्त ही दूसरे विचारों के नीचे उन्हें दबा देता।

हस्पताल में केवल चार दिन शेष रहना था, इसमें कोई संशय नहीं कि मलेरिया और निमोनिया ने उसकी शक्ति क्षीण कर दी थी, फिर भी वह कमजोरी का ज़रा ध्यान न करता था। इसके उल्टे वह प्रसन्न होता, अब उसे ऐसा अनुभव होता था कि आवश्यक से आवश्यक बोझ, उसके ऊपर से उठ गया है, विचारों में अब पहला खिचाव नहीं था, न ही विचारों में गन्दगी ही थी। बुखार और निमोनिया ने फिल्टर का काम दिया था। वह महसूस करता था कि अब उममें वह भारी-पन नही रहा, जो उसे पहले तंग करता था। बुखार ने उसके नोकिले विचारों को घिसा दिया था। इसलिये अव दर्द का अनुभव भी होना खत्म हो गया था।

दिमाग़ बिल्कुल ही हल्का था और बाकी शरीर के सभी अंग भी हल्के-फुल्के हो गये थे, जिस प्रकार मैने कपड़े को फटक-फटक कर उजला करता है, इस तरह बुखार ने अच्छी तरह झंझोड़-निचोड़ कर उसका सारा मैल निकाल दिया था।

जब नर्स अपनी पिंडलियों की ओर देखती हुई बाहर निकली, तो सैय्यद मन ही मन में मुस्कराया, फिर उसने सोचा, नर्स की पिंडलियाँ वास्तव में सुन्दर हैं, दूसरे रोगियों के लिये चार दिन भी यहाँ रहना कठिन था; किन्तु सैय्यद ने बड़ी प्रसन्नता पूर्वक यह दिन व्यतीत किये शाम को उसके मित्र आ जाते और सवेरे उसकी माँ आती, जो अपनी

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हवा के घोड़े