पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/६७

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पन्द्रह दिन घर से बाहर रहने के बाद सैय्यद ने जब घर में प्रवेश किया, तो सब से पहले राजो नज़र आई, जो दौड़ी-हुई बड़े दरवाजे से बाहर निकल रही थी। उसे देख कर रुक गई और तुतला-तुतला कर कहने लगी--"मियाँ जी! आप ठीक..ठीक हो गये.. मैं...पाँच रुपये के पैसे लेने जा रही हूँ।"

यह कह कर वह चली गई और सैय्यद ने आराम के साथ सांस भरी। आगे बढ़ा, उसकी माँ झट छाती से लगा और चढ-चढ बलाऐं लेने लग गई।

सैय्यद को अपनी माँ के अधिक प्यार से उलझन होती थी; किन्तु अब उसका स्वास्थ्य ठीक था। इसी कारण वह आज शान्ति पूर्ण खड़ा रहा और माँ के प्यार को अच्छा समझने लगा और खुशी का अनुभव किया।

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हवा के घोड़े