पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/७०

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सफेद रंग की साड़ी; जिसके किनारे-किनारे एक सफेद तिल्ले का बौडर दौड रहा था। मूल्य चुका कर सैय्यद ने एक चिट पर अपना और नर्स का नाम लिख कर चिपका दिया। अब्बास ने बक्स बन्द किया और उसे लेकर हस्पताल की ओर चल पड़ा। अब्बास के जाने से पूर्व सैय्यद ने अब्बास से कहा--"देखो! हस्पताल में जाकर किसी को भी देना ठीक नहीं?"

अब्बास ने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा--"मैं नर्स के घर जा रहा हूँ, हस्पताल में तो रोगी जाते हैं।"

अब्बास चला गया और संध्या समय वापस आया जब सैय्यपू अपनी चाय आदि से निवृत हो, माँ के पास थोडी देर बैठ कर इधर वाले कमरे में आ रहा था कि दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी और ख्वाजा साहब की आवाज गूँज उठी, तो उसने समझ लिया कि अब्बास है और कोई दिल बहलाव की बात होगी? जब दोनों शान्ति पूर्वक कमरे में बैठ गए, तो बात-चीत शुरू हुई।

अब्बास ने ही श्री गणेश किया--"भाई मुझे शक है कि उसे तुम से बहुत बुरी तरह प्यार है और दिन-रात तुम्हारी जुदाई में आहें भरती रहती है, रात को सो नहीं सकती आदि-आदि।"

"अरे! भाई नहीं, तुम मजाक मत समझना, उसने खुद नहीं कहा; किन्तु मैंने महसूस किया है कि वह तुम्हारे प्यार में जकड़ी जा चुकी है, न जाने तुम ने उस पर क्या जादू कर दिया है?"

"मैं पूरी बात तो सुन लूँ...?"

"मैं वहाँ गया उसका ठिकाना मालूम किया। वह ड्यूटी पर न थी, इसलिये उसने मुझे छोटे से कमरे में बुला लिया और मे आने

हवा के घोड़े
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