पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/७१

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का कारण पूछा। मैंने साड़ी वाले बक्स को उसके हाथों में थमा दिया। उसे खोल कर जब उसने साड़ी देखी, तो उसकी आँखों ने आँखें धोने का प्रयास किया, यानी कि आँखें गीली हो गई, कहने लगी व्यर्थ में कष्ट किया; किन्तु यह साड़ी मुझे पसन्द है। उसका जोक बहुत अच्छा था। माना कि मैं सफेद कपड़े पहन-पहन कर मैं सफेद कपड़ों से उब गई हूँ; परन्तु इसमें भी एक मुख्य कारण है...ये...ये बौडर कितना आकर्षक है, यदि बड़ा होता तो सारी सुन्दरता नष्ट हो जाती? मेरी ओर से उनको धन्यवाद कहना; किन्तु वे स्वयं क्यों नहीं आये ? क्योंकि उन्हें स्वयं आना चाहिये था। यह कहते-कहते वह रुक सी गई, और बात बदल डाली।

"आपने भी अधिक कष्ट किया है, मुझे आपका भी धन्यवाद करना चाहिए...।"

यह सुनकर सैय्यद ने अब्बास से पूछा कि इस बात-चीत से यही सबूत मिलता है कि कुछ भी नहीं...।

"अरे भाई! मेरे बताने से क्या होता है? मैं मिस फरिया तो नहीं हूँ। यदि तुम वहाँ होते तो वहाँ तक ही पहुँचते, जहाँ तक मैं पहुँच पाया हूँ और फिर यह भी तो उसने कहा था कि उनसे कहना कि जब भी कम्पनी-बाग की ओर आएँ तो मुझे अवश्य ही मिलकर जायें। मेरे कमरे का नं० उनको बता देना, इसलिये उनको कष्ट न होगा; लेकिन ठहरिये...?"

"तुम्हें मालूम है इसके बाद उसने क्या कहा?"

"तुम से कहा होगा चले जाइये?"

उसने छोटे से पैड पर तुम्हें एक पत्र लिखा; लेकिन थोड़ी देर विचार के बाद फाड़ दिया, फिर एक नया पत्र लिखना शुरू किया और

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हवा के घोड़े