पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/७४

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हाथ मलने शुरू कर दिए; किन्तु में इस ढंग के प्यार का अनुयायी नहीं, जो क्षय रोग की तरह सदा के लिये चिमट जाये। मैं अधिक से अधिक एक या दो माल किसी स्त्री से प्यार कर सकता हूं, बस इस से अधिक प्यार करना मेरे बस का रोग नहीं। गालिब ने कितना सुन्दर कहा है--'मिसरी की मक्खी बनो! शहद की मक्खी न बनो', तो भई, मैं तो मिसरी की मक्खी हूँ अपना तो यही नियम है, चाहे प्यार हो, या न हो। विवाह अलग रहे और प्यार पृथक हो। वाह अल्लाह, यदि ऐसा हो जाये, तो क्या कहने हैं; किन्तु मुझे ऐसा लगता है, बस अब किला अपने ही हाथ आने वाला है, तो बस सारी जर्मनी मेरी है। मुझे यह लाइन तोड़नी है; जिम दिन टूट गई, बेड़ा पार समझो..।"

अब्बास का भाषण सुनकर सैय्यद ने अपने और उस के प्यार की तुलना की; पृथ्वी और आकाश का अन्तर था; किन्तु एक बात थी कि अब्बास ने दूसरे व्यक्तियों की तरह अपने शारीरिक प्यार पर पर्दा नहीं डाला, उसने स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि एक या दो साल से अधिक किसी औरत से प्यार करना अच्छा नहीं समझता है.?

प्यार कितनी देर रहता है, यह सैय्यद को मालूम न था? मयादी बुखार की तरह उसका समय भी निश्चित होता है। यह भी उस को ज्ञात नहीं। मयादी बुखार उसको एक बार चढ़ा था, जो उसकी माँ के कथनानुसार सवा महीने तक रहा था; किन्तु यह प्यार जो अभी-अभी इसके हृदय में उत्पन्न हुआ था, कब तक उसे कष्ट देता रहेगा? यह प्रश्न उसके हृदय में उत्पन्न हुआ ही था कि राजो और उसके पास-पास की सभी वस्तुएँ सामने धूमने लगीं। वह उस व्यक्ति की तरह जो अनजाने ही में किसी मुसीबत में फँस जाये, बहुत घबड़ा गया, अपितु उसने तुरन्त ही स्वयं को इन विचारों से स्वतन्त्र कराने के लिए अब्बास से कहा।

हवा के घोड़े
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