पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

"अब्बास आज कोई खेल देखना चाहिए?"

अब्बास जिसके दिमाग़ में प्यार बसा हुआ था, कहने लगा---"खाली तस्वीर प्यास नहीं बुझा सकेगी, दोस्त .. मुझे औरत चाहिए औरत, गर्म-गर्म गोश्त वाली औरत, जिसके सुन्दर गालों पर मैं अपने प्यार के ठंडे टोस्ट सेक सकूँ। तुम्हें एक मौका मिल रहा है, उससे अवश्य ही लाभ उठाओ। जाओ वह नर्स तुम्हारी है, खुदा कसम तम्हारी है। उसकी आँखों ने मुझे बता दिया था कि वह एक गलती कर के रोना चाहती है। जानो, उसको अपने जीवन की पहली गलती पर न रोने देना पागल न बनो, गलतियाँ न होतीं, तब औरते भी न होती मेरी समझ में नही आता, तुम्हारे विचार किस ढंग के हैं? भाई एक औरत तम्हारी मदद से अपने जीवन में खुशी के रंग भरने की कोशिश कर रही है। यदि तुम अपने रंग के बकस को बन्द कर डालो, तो तुम्हारा पागलपन है --काश! तुम्हारे स्थान पर कहीं मैं होता, फिर .. फिर देखते कैसे-कैसे तीखे रंग उनके जीवन में भरता ..?"

अब्बास का भाषण सैय्यद उन कानों द्वारा सुनने की चेष्टा कर रहा था, जिनमें राजो का प्रेम अब भी भिनभिना रहा था। हस्पताल में बहत हद तक राजो को भूल गया था; किन्तु आज पहले ही दिन घर पाने पर वह फिर उसके अन्दर आगई थी। अब्बास बातें कर रहा था और उसके हृदय में यह विचार उत्पन्न हो रहे थे कि उठे और अन्दर जाकर राजो को एक बार देख पाये। नयनों से ही देखे; मगर देखे-अवश्य। उस की ओर प्यार भरी दृष्टि से न देख कर घृणा की दृष्टि से देखा जाये। मगर देखे अवश्य; किन्तु उसके साथ-साथ वह यह भी नहीं चाहता था कि जो निश्चय वह कर चुका है; क्षण भर में खत्म कर दे।

उसने बड़ी सावधानी से काम लेकर राजो के विचार को एक बार

७४ ]
हवा के घोड़े