पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/७६

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फिर उसने अपने हृदय के अन्दर कुचल दिया और उठ खड़ा हुआ, बोला--"अब्बास, कोई नई बात सुनाओ..सच पूछो तो मैं प्रेम का अर्थ अभी तक भी न जान सका, इतना अवश्य जानता हूँ, प्रेम वह वस्तु नहीं है; जिसका तुम अलाप कर रहे हो। तुम एक औरत से केवल एक या दो वर्ष प्यार करने के आदि हो, मगर मैं तो आजीवन भर पट्टा लिखाना चाहता हूँ। यदि मुझे किसी से प्यार हो जाये..तो मैं उस पर पूर्ण अधिकार चाहता हूँ? वह औरत पूर्णतया मेरी होनी चाहिए। उसका प्रत्येक अंग मेरे प्यार के अधिकार में होना चाहिए। प्रेमी और डिकटेटर में मैं कोई भी अन्तर नहीं समझता, दोनों बल चाहते है? दोनों शासन की अन्तिम सीढ़ी के इच्छुक हैं प्रेम तुम प्यार-प्यार की रट लगाते हो। मैं खुद प्यार-प्यार कहता हूँ, मगर इस विषय में हम कहाँ तक जानते है किसी अंधेरी खाई में या बाग की घनी सी झाड़ी के पीछे अगर तुम्हारी किसी शहतूत की भूखी औरत से भेंट हो जाए, तो क्या तुम कहोगे, मैने प्यार लड़ाया है, मेरे जीवन में चंचलता ने प्रवेश कर लिया है? ग़लत है, बिल्कुल ग़लत, यह प्यार नहीं, प्यार कुछ और ही होता है। मैं यह भी नहीं कहता हूँ कि प्यार शुद्ध विचारों का नाम है और जैसा हमारे बड़ों ने कहा है कि औरत इच्छाओं से खाली नहीं होती। मैं इसको भी नहीं मानता। मुझे ऐसा जान पड़ता है कि मुझे मालूम है, प्यार क्या है ..लेकिन लेकिन मैं पूर्ण रूप में अपने शब्दों को पूरा नहीं कर सकता। मैं समझता हूँ, प्यार हरेक आदमी के अन्दर नई उमंगें लेकर पैदा होता है। जहाँ तक जगह का सवाल है, एक ही रहती है, अमल में भी एक ही है और जवाब भी एक जैसा ही निकलता है; लेकिन जिस तरह रोटी खाने का मतलब एक सा है और बहुत से आदमी रोटी के टुकड़े जल्दी-जल्दी उठाते हैं और बगैर चबाए ही उनको निगल जाते हैं और बहुत से चबा-चबाकर रोटी को अपने पेट में भरते हैं। यह शब्द भी पूरी तरह से पूरा नहीं कर सकते भाई मेरा

हवा के घोड़े
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