पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/७९

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का भय हो कि वह उसकी आँखों में राजो के प्रेम की कहानी पढ़ लेगा, अतः वह जाने क्या सोच कर किस कारण एक ओर हट गया और समीप पड़ी तस्वीर को हाथ लगा, उसे इधर-उधर हिलाते हुए अब्बास ये कहा---"तुम तुम ..तुम! तुम कुछ नहीं! तुम्हारी बाते बहुत ही बेढंगी है, तुम जब बातें करते हो, तब-तब मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारे मुख से खून की गन्ध आ रही है। सच तुम खून पीने वाले दरिन्दे हो।"

"और तुम?" अब्बास ने फिर सिग्रेट की राख झाड़ी, फिर कहो लगा--"मैं खून पीने वाला दरिन्दा ही सही; किन्तु तुम जैसे दूध पीने वाले मजनुओं से तो फिर भी कही अच्छा हूँ। तुम तो केवल अच्छाई और बुराई के बीच लटक रहे हो। अच्छा है कि मैं चमगादड़ नहीं हूँ, मैं एक तूफ़ानी समुद्र हूँ और तुम तो अभी तक मरुस्थल पर खड़े हो। मैं कवि हूँ और तुम एक अनभिज्ञ वक्ता। तुम एक ऐसे ग्राहक हो जो औरत को पाने के लिए आजीवन भर धन जोड़ते रहोगे और उसे कभी भी पूरा न कर सकोगे?"

"मैं ऐसा ग्राहक हूँ, जो कितनी ही औरतों का क्रय-विक्रय करूँगा। तुम ऐसा प्रेम करना चाहते हो कि तुम्हारे असफल प्रेम पर कोई घटिया सा लेखक तुम्हारी प्रेम-कथा लिखे; जिसे चन्द्र एण्ड सन्ज जैसे प्रकाशक लाल-पीले रंग के काग़जों पर छापे और दरीबा-कला में एक-एक इकन्नी में तुम्हारी प्रेम कहानी बिके। मैं अपनी जीवन-पत्नी को दीमक बन कर चाट जाना चाहता हूँ, ताकि इसका चिह्न भी न दीख पड़े। तुम प्रेम में जीवन चाहते हो मैं जीवन में प्रेम! किन्तु तुम कुछ भी नहीं हो। कुछ सोचो तो सही कि तुम क्या हो?"

सैय्यद को लगा, जैसे वास्तव में अब्बास ही सब कुछ है। वह कुछ भी नहीं। वह अपने विवेक से अपने आप प्रश्न कर उठा--"मैं

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हवा के घोड़े