पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/८०

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क्या हूँ और यहाँ इस घर में एक और है और जिससे मैं प्यार करता हूँ; किन्तु किन्तु, यह प्यार क्या है? दुःख और सुख का कैसा अनुभव है? मैं चाहता हूँ, वह मेरी बन जाये; किन्तु साथ ही यह भी सोचता है कि इस प्रकार के विचारों को अपने हृदय से नोच-नोच करके फेक क्यों न दूँ? मैं किस झगड़े में पड़ गया हूँ, क्या दुःखी जीवन का ही दूसरा नाम प्यार है?"

कुछ भी हो; किन्तु सैय्यद यह भली-भाँति जानता था कि यह दुःख या इसका और जो भी नाम रखा जाये, वह वास्तव में प्रेम ही था, जो धीरे-धीरे इस हृदय में अपना पूरा स्थान बना चुका था; जिस प्रकार बहुत से व्यक्ति भूत-प्रेत आदि से भय खाते हैं, उसी प्रकार सैय्यद प्यार से भय खाने लगा था। उसको क्षण प्रति क्षण डर रहता है कि कही ऐसा समय न आ जाए कि प्रेमावेग में उस बिगड़े हुए घोड़े की तरह वह बे-लगाम न हो जाए और वह हाथ मलता रह जाये। कभी वह विचार करता कि यदि वह कुछ कर बैठेगा, पर दूसरे क्षण ध्यान आता कि वह क्या कर बैठेगा? यह उसको मालूम नहीं था। वह तो भविष्य में आने वाली आंधी की प्रतीक्षा कर रहा था, जिसकी प्रचण्ड लहरें आकाश में छाने वाले गर्द से ही सूचना देने के लिए बाहर या जाती है। सम्भवतः इसी प्यार के कारण वह कुछ भयभीत सा हो उठा था, शायद वह कायर बन गया था।

अब्बास अपने ही विचारों में व्यस्त था, इसी कारण वह अपने प्रिय के धड़कते हुए दिल की ध्वनि न सुन सका; क्योंकि वह दूसरों की समस्याओं को सुलझाने का आदी न था। उसे केवल अपने ही रोने पर विचार करने में आनन्द आता था। वह सदा ही अपने आप में खोया-खोया रहता था। उसे इतना समय ही नहीं मिलता था कि दूसरों की बात पर कुछ सोच-विचार कर सके; किन्तु फिर भी वह एक अच्छा मित्र

हवा के घोड़े
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