पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/८१

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था। शायद इसीलिये वह मित्रता और उसकी क्षमा पर जरा ध्यान भी नहीं दे सकता था। वह उसको आपत्ति में कभी भी नहीं देखना चाहता था। वह कहा करता था, अब छोड़ो, तुम कोन से वहम में फस गये हो। दोस्ती-दोस्ती सब फिजूल की बकवास है। धातु और पत्थर के युग में दोस्त हुआ करते होगे; किन्तु विज्ञान के युग में कोई किसी का दोस्त नहीं हो सकता। सारे व्यक्ति यदि दोस्ती की रस्सी बटना जुर कर दे, तो समस्त कार्यकर्म समाप्त हो जाये। तुम्हें कोई दोस्त कहता है, कहने दो? कहो, मैं भी तुम्हे मित्र कहता हूँ। ठीक है सुनते जाओ, किन्तु इससे अधिक इस पर विचार नहीं करना चाहिये। जितना अधिक विचार करोगे, उतने इसमे अभाव के गड्ढे दिखाई देगे। आज संसार में जितने भी काले कारनामे हो रहे हैं, सभी इसी विचार के परिणाम है।"

"हत्याएँ होती हैं; पर अधिक सोच-विचार के कारण, चोरी होती हे, अधिक सोचने के कारण ओर डाके भी पड़ते हैं, केवल अधिक सोच-विचार करने से। मस्तिष्क और बारूद की मैगजीन में कुछ भी अन्तर नहीं। सोच-विचार उस पत्थर के समान अनेको चिंगारी फेंक देता है। गधे बन जाओ, उल्लू बन जाओ, किन्तु खुदा के लिए अक्लमन्द और बेफिक्र न बनो।"

अब्बास इस प्रकार भावुकता के प्रवाह में लच्छेदार बाते करता, छोटी सी बात को इस ढंग में कहता कि सुनने वाला आश्चर्य में पड़ जाये; पर यह उसका स्वभाव बन चुका था। संसार के विषय में उसने कुछ ऐसे नियम बना रखे थे, जिन पर वह चल रहा था। इसमे सन्देह नहीं कि वह सदा चिन्ता और दुख के घेरे के बाहर रहता था; किन्तु फिर भी इन बातो पर कुछ क्षण उसे विचार करना ही पड़ता था, जो उससे सम्बन्धित होती थी।

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हवा के घोड़े