इस समय भी वह विचार कर रहा था; क्योंकि इसके मुख पर शान्ति के चिह्न न थे, जो कुछ समय पहले दीख रहे थे। एकाएक सिग्रेट पीने की इच्छा उसने नई सिग्रेट जलाई और बड़े जोर-जोर से कश खींच रहा था और इसका मित्र सैय्यद आग के पास बैठा हृदय और मस्तिष्क के मन-युद्ध में चोट पर चोट खा रहा था।
सहसा अब्बास चौंक पड़ा। उसने कहा--"छोड़ो भी इस झगड़े को। व्यर्थ में क्यों स्वयं को उलझन में डाल रहे हो? जो होगा, देखा जायेगा।"
अपने दोस्त को संकेत करते हुए उसने कहा---"अरे भाई, किस बहम में पड़ गए, कुर्सी पर बैठो? आप अभी-अभी बीमारी से उठे हैं। ऐसा न हो कि कहीं फिर हस्पताल का मुह देखना पड़े; परन्तु इस वार अपना स्थान मुझे देना। वाह अल्लाह! वह नर्स तो मुझे भा गई है।"
यह कह कर वह स्वयं आराम कुर्सी पर बैठ गया।
सैय्यद भी उठ कर कुर्सी पर बैठ गया। अधिक बात-चीत और सोच-विचार ने उसे कमज़ोर कर दिया था। इसी कारण थकी-मादी आवाज़ में उसने अब्बास से कहा--"अब्बास! मैं अधिक कमज़ोर हो गया हूँ। मेरा विचार है कि कुछ दिनों के लिये बाहर चला जाऊँ, जिससे हवा पानी बदल जाये।"
अब्बास ने पूछा---'कहाँ जाओगे?"
सैय्यद ने उत्तर दिया---"कहाँ जाऊँ? यही तो सोच रहा हूँ। शरद ऋतु में कहाँ जाना लाभदायक रहेगा? कोई ऐसा स्थान बताओ जहाँ दिल लग जाये? क्या बम्बई चला जाऊँ? कलकत्ता भी बुरा